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________________ कहीं कोई विरोधाभास नहीं है केवल शिष्टाचार है। तुम तैयार नहीं हो; लेकिन मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाना चाहता हूं, इसलिए मैंने कहा कि मैं तैयार नहीं हूं। यही तनाव और उत्सुकता और लोभ ही है, जो अशांति दे रहा है। अगर तुम तैयार हो और मैं तुम से कहता हूं प्रतीक्षा करो, तो तुम मेरी सुनोगे। यह प्रश्न आनंद समर्थ का है। अभी कुछ दिन पहले भी वह यही पूछने के लिए आए थे, और मैंने उनसे बार-बार कहा था प्रतीक्षा करो। और समर्थ ने कहा, अब मैं और प्रतीक्षा नहीं कर सकता। आपने तो पहले ही कह दिया है, जब कभी कोई तैयार होगा तो मैं उसे हस्तांतरण करने के लिए तैयार हूं। अब मैं तैयार हूं; तो फिर आप मुझसे क्यों कहते हैं कि प्रतीक्षा करो? और मैंने फिर से उनसे कहा, प्रतीक्षा करो। लेकिन वह सुनता ही नहीं। तुम मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं। यह तुम्हारा किस तरह का समर्पण है? तुम पूरी तरह से बहरे हो और फिर भी तुम सोचते हो कि तुम तैयार हो। तुम लोभी हो, इतना मैं जरूर समझता हूं। तुम में अहंकार है, उसकी खबर मुझे है। तुम जल्दी में हो, मुझे उसका भी पता है। और तुम चाहते हो कि तुम्हें बड़े सस्ते में चीजें मिल जाएं, यह भी मैं समझता हूं। लेकिन तुम तैयार नहीं हो। मैं तुमसे एक कथा कहूंगा दो नन जो कि एक देहाती इलाके से गुजर रही थीं, उसी समय उनकी कार में पेट्रोल खतम हो गया। वे कुछ मील पैदल चलीं और चलते -चलते आखिरकार एक फार्महाउस में पहुंच गई ', वहां पर उन्होंने अपनी समस्या के बारे में बताया। किसान ने कहा,' आप टैरक्टर में से कुछ पेट्रोल ले सकती हैं, लेकिन उसे रखने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।' फिर कुछ देर सोचने के बाद उस किसान ने एक पुराना पीट जैसे -तैसे ढूंढ निकाला। उस पीट में पेट्रोल भरकर दोनों नन अपनी कार की ओर लौटीं और कार में पेट्रोल डालने लगीं। उसी समय एक रब्बी वहां से अपनी कार में गुजरा। उसने जब यह दृश्य देखा, तो वह रुक गया और उन ननों से कहने लगा, 'सिस्टर्स, मैं तुम्हारे धर्म से सहमत नहीं हूं –लेकिन फिर भी मैं तुम्हारी आस्था की प्रशंसा करता हूं।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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