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________________ तरह से खो जाना और स्वयं को संपूर्ण रूप से भुला देना। अपने को उससे अलग रखना । - थलग मत अगर तुम इस भांति नृत्य कर सको कि केवल नृत्य ही बच रहे और नर्तक खो जाए, तो अचानक एक दिन तुम पाओगे कि नृत्य भी खो जाता है और तब जो जागरुकता होती है, वह न तो मन की होती है और न ही वह अहंकार की होती है। चौथा प्रश्न: असल में तो उस जागरूकता का अभ्यास नहीं किया जा सकता है, जागरूकता आ सके उसकी तैयारी के लिए तो कुछ और करना पड़ता है, लेकिन उसके पीछे जागरुकता अपने से आ जाती है। तुम्हें तो केवल उसके प्रति अपने को खुला रखना है। 'ये बातें केवल शिष्य और सदगुरु के अंतरंग संबंधों में ही हस्तांतरित की जा सकती हैं' तो हम यहां क्या कर रहे हैं? आपके साथ मेरा इसी तरह का नाता है और फिर भी मुझे कुछ घट नहीं रहा है।" तुम म निर्णय नहीं ले सकते हो कि मेरे साथ तुम्हारा वैसा नाता है या नहीं। केवल मैं ही निर्णय ले सकता हूं। हो सकता है तुम्हारा लालच तुम से कहता हो कि तुम्हारा मुझसे इस तरह का नाता है। तुम्हारी आकांक्षा तुम से कह सकती है कि तुम पूरी तरह से तैयार हो, लेकिन तुम्हारा यह कहना कि तुम तैयार हो, तुम्हें तैयार नहीं बना देता है। जब तक मैं ही न जान लूं इसे तब तक कुछ भी हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। और अगर तुम स्वयं के भीतर देखो, तो तुम भी यह देख पाओगे कि तुम तैयार नहीं हो। यहं । पर होना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। संन्यासी मात्र हो जाना ही काफी नहीं है- आवश्यक है, फिर भी पर्याप्त नहीं है कुछ और चाहिए, ऐसा समर्पण या त्याग चाहिए, जिसमें कि तुम विलीन हो जाओ तुम मिट जाओ, तुम खो जाओ। जब तुम नहीं रहते, तब उन कुंजियों को दिया जा सकता है, इससे पहले नहीं। अगर तुम इसी की ओर आंख लगाए बैठे हो, इसी की प्रतीक्षा कर रहे हो, तो वह देखना और प्रतीक्षा करना ही बाधा बन जाएगी। मैं तुमसे एक छोटी सी कथा कहना चाहूंगा
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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