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________________ बस, वह ऐसा दिखाने की कोशिश जरूर करता है कि वह प्रामाणिक है, सच्चा है। वह हंस नहीं सकता, क्योंकि उसे भय होता है कि अगर वह हंसेगा तो कहीं उस हंसी के माध्यम से उसका असली चेहरा दूसरे लोगों को दिखायी न दे जाए क्योंकि हंसी बहुत बार ऐसी चीजों को प्रकट कर देती है, जिन्हें कि व्यक्ति छिपाने की कोशिश कर रहा होता है। अगर तुम हंसते हो, तो तुम्हारी हंसी यह प्रकट कर सकती है कि तुम कौन हो। क्योंकि हंसी के क्षण में तुम शिथिल हो जाते हो, अगर शिथिल नहीं हो सकते हो, तो तुम हंस नहीं सकते हो। हंसना शिथिल होना है, विश्रांत होना है और अगर तुम शिथिल और ढीले नहीं हो सकते हो, तो तुम हंस ही नहीं सकते हो। अगर तुम सच में हंसते हो तो सभी तनाव चले जाते हैं, तुम शिथिल हो जाते हो। उस हंसी में तुम्हारी कठोरता, संवेदनहीनता विलीन हो जाती है तुम चाहो तो उदास, निराश चेहरा लटकाकर भी रह सकते हो, लेकिन अगर तुम हंसते हो तो अचानक तुम पाओगे कि पूरा शरीर तनाव रहित और शिथिल हो गया है और उस तनाव रहित क्षण में, उस विश्रांति के क्षण में कुछ ऐसा बाहर आ सकता है, जिसे तुम न जाने कब से छिपाए हुए थे और नहीं चाहते थे कि दूसरे उसे देखें। इसीलिए तो गंभीर लोग हंसते नहीं है केवल सच्चे और प्रामाणिक लोग ही हंस सकते हैं केवल प्रामाणिक लोग ही हंसते हैं। उनकी हंसी छोटे बच्चों जैसी निर्दोष होती है। - गंभीर लोग न तो कभी चीखेंगे, न चिल्लाएंगे, न रोके क्योंकि तब हंसना उनकी कमजोरी को प्रकट कर देगा। और वे यह दिखाना चाहते हैं कि वे मजबूत हैं, शक्तिशाली हैं। लेकिन एक सच्चा और प्रामाणिक व्यक्ति जैसा होता है स्वयं को वैसा ही प्रकट कर देता है। वह अपने अंतर- अस्तित्व की गहराई तक तुम्हें ले जाता है। झेन लोग सच्चे और प्रामाणिक तो होते हैं, लेकिन गंभीर नहीं। कभी कभी तो इतने प्रामाणिक होते हैं कि वे धार्मिक ही मालूम नहीं होते हैं। उनके इस तरह के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इतने प्रामाणिक कि वे अधार्मिक ही मालूम पड़ते हैं, लेकिन फिर भी वे अधार्मिक नहीं होते हैं। क्योंकि झेन में प्रामाणिक होना ही धार्मिक होने का एकमात्र उपाय है। मेरा भी पूरा प्रयास यही है कि तुम्हें प्रामाणिक होने में कैसे मदद मिल सके – न कि गंभीर होने में। मैं चाहता हूं तुम हंसो, मैं चाहता हूं तुम रोओ। मैं चाहता हू कि तुम कभी प्रसन्न होने के लिए रोओ। जो कुछ भी तुम हो, जैसे भी 'तुम हो, जैसे तुम भीतर हो, वैसे तुम बाहर भी होओ अगर तुम अपने में केंद्रित हो, अपने में थिर हो, तभी तुम जीवंत, प्रवाहमान, गतिशील, विकासमान हो सकते हो। और तभी तुम अपनी नियति को उपलब्ध हो सकते हो । अंतिम प्रश्न:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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