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________________ थे। जब चाऊ –चो ने कहा, 'जरा सरू के वृक्ष की ओर देखो,' तो उसने कहा, ' धर्म से संबंधित सभी मढ़ताओं को गिरा दो, और क्या सार है, क्या असार है इसे भी जाने दो -अभी और यहीं में जीओ। देखो, और इसी देखने में जो अभी वर्तमान का क्षण है -उसी में ही वह सब उदघटित हो जाता है जो धर्म का सार है।' झेन दूसरे धर्मों से नितांत भिन्न है, एकदम भिन्न है। झेन अद्वितीय है, अनूठा है। अगर तुम जड़ धर्म –सिद्धांतों में जकड़े हुए हो, किन्हीं मतवादों में उलझे हुए हो तो तुम झेन को नहीं समझ सकोगे। मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा एक पंद्रह वर्ष की कैथोलिक युवती से मदर सुपीरियर ने पूछा कि 'वह जीवन में क्या बनना चाहती युवती ने उत्तर दिया, 'प्रास्टिटयूट।' वृद्ध नन ने चिल्लाकर पूछा, 'क्या कहा?' युवती ने शांत भाव से वही उत्तर दिया, 'प्रॉस्टिटधूट।' पवित्र वृद्धा ने कहा, ' ओह! संतों की जय हो। मुझे लगा तुमने कहा प्रोटेस्टेंट! ' इस ढंग का मन कभी झेन को नहीं समझ सकता, वह उनकी समझ के बाहर की बात है। उनका, मन तो जड़ सिद्धांतों, मतों और संप्रदायों में ही बंटा रहता है। झेन लोग गंभीर नहीं होते, लेकिन वे प्रामाणिक लोग हैं, सच्चे लोग हैं। और ये दोनों बातें नितांत भिन्न हैं। उन्हें कभी गलत मत समझना, उनके बीच कभी उलझ मत जाना। एक सच्चा आदमी कभी गंभीर नहीं होता। वह प्रामाणिक होता है। अगर वह हंसता है, तो वह सच में हंसता है। अगर वह प्रेम करता है, तो वह सच में ही प्रेम करता है। अगर वह क्रोधित होता है, तो बस क्रोधित होता है, वह उससे अलग कुछ दिखाने की कोशिश नहीं करता। वह प्रामाणिक होता है, सच्चा होता है। जो कुछ भी है, जैसा भी वह है, उसी रूप में वह तुम्हारे सामने स्वयं को प्रकट कर देता है। वह संवेदनशील होता है। वह किसी तरह के मुखौटों. के पीछे स्वयं को नहीं छिपाता है, वह प्रामाणिक होता है, सच्चा होता है। जब कभी वह उदास होता है, तो उदास ही होता है। और जब कभी वह रोता है, तो बस रोता है। वह कुछ छिपाने की कोशिश नहीं करता है, और वह उसे दिखाने की कोशिश नहीं करता है जो वह नहीं है। वह जैसा है वैसा ही रहता है। वह कभी अपने केंद्र से नहीं हटता, और न ही वह दूसरे के दवारा कभी अपना ध्यान भंग होने देता है। लेकिन गंभीर व्यक्ति वह है, जो सच्चा नहीं होता, जो प्रामाणिक नहीं होता, लेकिन फिर भी वह ऐसा दिखाने की कोशिश करता है कि वह प्रामाणिक है, कि वह सच्चा है। गंभीर व्यक्ति नकली होता है;
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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