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________________ कहीं अपनी छतरी भूल आए। उनकी पत्नी अनुमान लगाने का प्रयास कर रही थी कि वे छतरी कहां छोड़ आए हैं। तो उनकी पत्नी ने उनसे पूछा, आप मुझे ठीक ठीक बताएं आपको किस समय मालूम हुआ कि छतरी आपके पास नहीं है?" , अब पहली तो बात भुलक्कड़ आदमी से यह पूछना ही गलत है; आपको किस समय मालूम हुआ कि छतरी आपके पास नहीं है? यह प्रश्न पूछना ही गलत है उस आदमी से, क्योंकि जो आदमी छतरी कहीं भूल आया है, उसे अब तक यह भी भूल गया होगा कि कब ! उनकी पत्नी ने पूछा, 'आप मुझे बताएं कि किस समय आपको पहली बार छतरी न होने का खयाल आया?' 'प्रिय, उन्होंने उत्तर दिया, 'बारिश बंद होने के बाद जब मैंने छतरी बंद करने के लिए हाथ ऊपर उठाया, तब मुझे पता चला कि छतरी तो है ही नहीं।' तुम ही अहंकार को पकड़े हुए हो और पूछते हो कि अहंकार को कैसे गिराना और पकड़ने वाला मन तो विधि को भी पकड़ना शुरू कर देगा। - कृपा करके मत पूछना कैसे?' बल्कि इसके विपरीत अपने भीतर खोजना कि तुम क्यों अहंकार को पकड़ रहे हो अब तक तुम्हारे अहंकार ने तुम्हें क्या दे दिया है? क्या वायदों के अतिरिक्त कुछ और भी दिया है अहंकार ने कभी? क्या अहंकार ने कभी कोई वायदा पूरा किया है? क्या अहंकार के द्वारा तुम्हें हमेशा इसी तरह से छला जाता रहेगा? क्या अहंकार के द्वारा तुम अभी तक पूरी तरह से छले नहीं गए हो? क्या तुम्हें अभी तक संतुष्टि नहीं हुई है? क्या तुम्हें अभी तक पता नहीं चला है कि यह तुम्हें कहीं ले नहीं जा रहा है, उन्हीं पुराने सपनों में चक्कर लगाते जाते हो, लगाते जाते हो। जब - जब हताशा और निराशा हाथ लगती है, क्या तुम्हें नहीं मालूम होता है कि एकदम आरंभ से ही वायदा झूठा था। अगर तुम निराश भी होते हो, तो तुम उसी क्षण फिर से नई आशा के सपने संजोने लगते हो। और अहंकार तुम्हें आशा पर आशा दिए चला जाता है। अहंकार नपुंसक है। वह केवल वायदे कर सकता है, वायदों को पूरा नहीं कर सकता । अहंकार को जरा गौर से 'जरा ध्यान से देखना । पहले वायदे और फिर वायदों की पूर्ति न होना, इन दोनों के बीच बहुत अधिक पीड़ा, हताशा, और दुख होता है। जिस नरक के बारे 'तुमने सुना है वह किसी भूगोल का हिस्सा नहीं है, वह कहीं पृथ्वी के नीचे कहीं पाताल में नहीं। वह तुम्हारे अहंकार में ही है। जब सच में तुम अहंकार की पीड़ा को ठीक से जान लोगे, तो अहंकार के ऊपर से तुम्हारी पकड़ छूट जाएगी। और अहंकार के बिदा होते ही समर्पण अपने से हो जाता है। समर्पण अहंकार की अनुपस्थिति है। लेकिन तुम यह नहीं पूछते हो कि 'मैं अहंकार को क्यों पकड़ता हूं?' तुम पूछते हो, 'समर्पण कैसे करूं?'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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