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________________ अगर परमात्मा को नाम दे दौ, तो वह संसार बन जाता है। अगर संसार को कोई नाम न दो, तो वह फिर से परमात्मा बन जाता है। तुम्हारे मन में जिस परमात्मा की धारणा है, वह संसार का ही रूप है; संस्कारमुक्त, असीम, अज्ञात संसार ही परमात्मा है। मेरी ओर बिना किन्हीं शब्दों के शन्य और मौन होकर देखो। तीसरा प्रश्न: अगर मैं स्वयं से ही भयभीत हं तो समर्पण कैसे करूं? और मेरे हृदय में पीड़ा हो रही है कि प्रेम का द्वार कहां है? समर्पण करने के लिए कहीं कोई 'कैसे' नहीं होता। अगर तुम अहंकार की मूढता, अहंकार के अज्ञान, अहंकार की पीड़ा को जान लो, तो तुम अहंकार को गिरा दोगे। कहीं कोई 'कैसे 'नहीं होता है। अहंकार की इस पीड़ा को अगर तुम ठीक से देख लो तो तुम उसे सिर्फ दुख, पीडा और नर्क से भरा हुआ पाओगे, फिर तुम अहंकार अपने से गिरा दोगे। तुम अहंकार को अभी भी इसीलिए पकड़े हुए हो, क्योंकि अहंकार के माध्यम से तुमने कुछ स्वप्न संजोकर रखे हुए हैं। तुमने उसकी पीड़ा, उसके नरक को अभी जाना नहीं है, तुम अभी भी आशा कर रहे हो कि उसमें कोई खजाना छिपा हो सकता है। स्वयं में गहरे उतरकर देखो। मत पूछो कि अहंकार को गिराना कैसे है। बस, देखो कि तुम उससे कैसे चिपके हो, कैसे उसे पकड़े हो। अहंकार को पकड़ना ही समस्या है। अगर तुम अहंकार को नहीं पकड़ते हो, तो वह अपने से ही गिर जाता है। और अगर तुम मुझसे पूछते हो कि अहंकार को कैसे गिराएं और तुम यह नहीं देख रहे हो कि तुमने ही अहंकार को पकड़ा हुआ है, तो मैं तुम्हें कोई विधि दे सकता हूं; तो तुम अहंकार को तो पकड़े ही रहोगे, और मैं जो विधि दूंगा उसको भी पकड़ लोगे। क्योंकि तुम किसी भी चीज को पकड़ने की प्रक्रिया को नहीं समझते हो। मैंने एक कहानी सुनी है। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर बहुत भुलक्कड़ किस्म के व्यक्ति थे, जैसा कि दार्शनिकों की आदत होती है - भलक्कड़ होने की। ऐसा नहीं है कि वे मन के पार चले गए हैं, या अ -मन को उपलब्ध हो गए हैं; क्योंकि उनका मन तौ साधारण आदमी से भी अधिक व्यस्त रहता है, उन्हें तो किसी बात का खयाल ही नहीं रहता। दार्शनिक लोग केवल मस्तिष्क में जीते हैं। तो वह जो प्रोफेसर थे, सब चीजें इधर -उधर रख देते थे, 'हर चीज को गलत जगह पर रख देते थे। एक दिन वे
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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