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________________ पड़ती है, तो मन उसे एकदम से करने का प्रयास करता है। निश्चित तब तुम असफल होते हो। और जब तुम असफल हो जाते हो तो मन कहता है, 'देखा न, मैं तुमसे हमेशा यही कहता रहा कि यह असंभव है।' छोटे -छोटे लक्ष्य बनाना। इंच -इंच सरकना। कहीं कोई जल्दी नहीं है। जीवन शाश्वत लेकिन यह मन की ही चालबाजी होती है। मन कहता है, ' अब तमने देख लिया न। अब इसे कर डालो -मन के साथ तादात्म्य छोड़ दो।' और निस्संदेह मन तुम्हारी मूढ़ता पर हंसता है। और कई-कई जन्मों से तुम मन को स्वयं के साथ तादात्म्य बनाने के लिए प्रशिक्षित करते रहे हो, और फिर एक क्षण में तुम उससे बाहर आ जाना चाहते हो। यह इतना आसान नहीं है। थोड़ा – थोड़ा, धीरे - धीरे, इंच -इंच अपने मार्ग पर बढ़ो। और बहुत ज्यादा की मांग मत करो, अन्यथा तुम स्वयं के ऊपर ही भरोसा खो बैठोगे। और एक बार जब स्वयं के ऊपर से भरोसा खो जाता है, तो फिर मन हमेशा -हमेशा के लिए मालिक बन जाता है, मास्टर बन जाता है। और लोग ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं। कोई आदमी तीस वर्ष से सिगरेट पी रहा होता है और फिर अचानक एक दिन वह एक क्षण में यह निर्णय ले लेता है कि अब वह कभी सिगरेट नहीं पीएगा। एक घंटे, दो घंटे तक तो वह अपने को रोके रहता है, लेकिन फिर एकदम तीव्रता से सिगरेट पीने की इच्छा होने लगती है, एकदम बड़ी जबर्दस्त इच्छा होने लगती है। तब व्यक्ति का पूरा का रचना तंत्र ही गडबडा उठता है, उसका परा रचना तंत्र अस्त व्यस्त हो जाता है। फिर धीरे - धीरे उसे लगने लगता है कि यह तो स्वयं के साथ बहत ज्यादती हो गई। उसका सारा काम-काज रुक जाता है', वह फैक्ट्री में काम नहीं कर सकता, वह आफिस में काम नहीं कर सकता। बस, उसे हमेशा सिगरेट पीने की ही इच्छा बनी रहती है। इसमें फिर वह बहुत अशांत हो जाता है, और इसके लिए उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। फिर एक समय ऐसा आता है, जब वह जेब से सिगरेट निकालता है, और सिगरेट पीने लग जाता है और तब कहीं जाकर चैन का अनुभव करता है। लेकिन उसने बहुत ही खतरनाक प्रयोग किया है। उन तीन घंटों में जब वह सिगरेट नहीं पीता, तो वह स्वयं के बारे में एक बात जान लेता है कि सिगरेट छोड़ने में वह असमर्थ है, कि वह कुछ कर नहीं सकता, कि वह अपने निर्णय के अनुरूप कुछ नहीं कर सकता, कि उसकी कोई इच्छा-शक्ति नहीं है, कि वह कमजोर और अशक्त है। तब यह बात मन में बैठ जाती है, और हर किसी के मन में कभी न कभी इस तरह की बात बैठ ही जाती है कभी तुमने सिगरेट के साथ इसे आजमाया होता है, तो कभी अपने भोजन को कम करने में, और कभी किसी और बात को लेकर - और बार -बार तुम असफल हो जाते हो। फिर असफलता तुममें घर कर जाती है। धीरे – धीरे तुम बहती हुई लकड़ी के समान हो जाते हो, तुम कहते हो, मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं। और अगर तुम्हें ही ऐसा लगने लगता है कि तुम कुछ नहीं कर सकते, तो फिर कौन. कर सकता है?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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