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________________ साथ नदी में उतरना । लेकिन मैं ऐसा बातचीत करने के लिए नहीं कह रहा हूं, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं तुम स्वयं से बोलते चले जाओ कि 'नहीं मैं मन नहीं हूं, ' क्योंकि तब यह भी मन ही तो कहेगा, और ऐसा कहना भी मन का ही होगा। बस, होशपूर्वक समझपूर्वक शांत और मौन हो जाना | कि अपने बगीचे की हरी घास पर लेटे हुए, उस समय मन को भूल जाना। उस समय मन की कोई आवश्यकता भी नहीं है। अपने बच्चों के साथ खेलते समय मन को भूल जाना। उस समय भी उसको याद रखने की कोई आवश्यकता नहीं है जब अपनी पत्नी से प्रेम कर रहे हो, भूल जाना मन को उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। जब भोजन करते हो, तो मन को ढोने की क्या आवश्यकता है? या फिर स्नान करते समय स्नानघर में मन को साथ रखने का क्या मतलब है? बस धीरे - धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे...... और जरूरत से ज्यादा करने की कोशिश मत करना, क्योंकि अगर जरूरत से ज्यादा करने की कोशिश तुम करोगे तो तुम असफल हो जाओगे। अगर ऐसा करने की बहुत कोशिश की तो फिर कठिन होगा और घबराकर कह उठोगे, 'ऐसा करना असंभव है।' नहीं, इसे धीरे-धीरे, थोड़ा थोडा करने की कोशिश करना। - मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा कोहन की तीन बेटिया थीं, और वह बहुत ही व्याकुलता के साथ उनके लिए वर की तलाश कर रहा था। जब एक युवक कोहन को ठीक लगा, तो उसने एकदम से उस युवक को पकड़ लेना चाहा। एक आलीशान भोज के बाद तीनों बेटियां उस युवक के सामने आईं। सबसे बड़ी रेचल, जो देखने में एकदम साधारण सी थी - सच तो यह है वह देखने में असुंदर थी दूसरी बेटी ईस्थर, यूं देखने में तो बुरी नहीं थी, लेकिन थोड़ी मोटी थी सच तो यह है वह थोड़ी ज्यादा ही मोटी थी तीसरी सोनिया, जो देखने में बहुत सुंदर और हर तरह से बहुत सुंदर युवती थी। कोहन ने युवक को एक ओर ले जाकर पूछा, तो फिर इनके बारे में तुम्हारा क्या विचार है? मेरे पास देने के लिए दहेज भी है - दहेज की फिकर मत करना। रेचल के लिए मेरे पास पांच सौ पाउंड हैं, और ईस्थर के लिए दो सौ पचास पौंड हैं, और सोनिया के लिए तीन हजार पाउंड हैं। - वह युवक तो एकदम अवाक रह गया 'लेकिन ऐसा क्यों है, आपकी सबसे सुंदर बेटी के लिए इतना ज्यादा दहेज क्यों ?' - कोहन ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा, 'हा बात ऐसी ही है कि वह कुछ कुछ थोड़ी सी यही कि वह थोड़ी बहुत गर्भवती है।' - तो रोज रोज थोड़ा थोड़ा होश का गर्भ धारण करने से प्रारंभ करना एकदम थोक के भाव गर्भ धीरे होश को सम्हालना। धारण मत कर लेना। बस थोड़ा थोड़ा धीरे एकदम बहुत अधिक करने की कोशिश मत करना, क्योंकि फिर वह भी मन की ही चालाकी होती है जब कभी कोई बात दिखायी ― -
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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