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________________ इसलिए इस बारे में 'कैसे ' की बात कभी मत पूछना। इसका कैसे' के साथ कोई लेना देना नहीं है। यह तो बस समझने की बात है। अगर तुम मेरी बात को समझ सको, तो उसी समझ से तुम उस बिंदु को देख सकोगे। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम उसे समझ जाओगे। मैं कह रहा हूं, तुम उसे देखने में सक्षम हो जाओगे क्योंकि जब हम कहते हैं समझना तो बीच में बुद्धि आ जाती है, मन काम करना शुरू कर देता है। 'दर्शन ऐसी कुछ बात है, जिसका मन के साथ कोई संबंध नहीं है। जब कभी तुम किसी सुनुसान मार्ग पर चल रहे हो और सूर्य ढल रहा हो और अंधेरा उतर रहा हो, और अचानक तुम देखते हो एक सांप रास्ते से गुजर रहा है तो तुम क्या करोगे? क्या उस समय तुम विचार में पड़ोगे? तुम सांप के बारे में सोचोगे कि क्या करूं, कैसे करूं, किससे पूछूं? तुम बस छलांग लगाकर रास्ते से हट जाओगे। वह छलांग का लगना ही, देखना है, दर्शन है, उसका मनोभाव से या विचार से कोई संबंध नहीं है। उसका सोच-विचार से कोई लेना देना नहीं है। अगर उस बाबत विचार भी शुरू होंगे तो थोड़ी देर बाद शुरू होंगे, लेकिन उस क्षण तो केवल यह सत्य देखना ही होता है, कि सांप रास्ते पर है। और जिस क्षण सांप के प्रति सचेत होते हो, वैसे ही छलांग लगाकर तुम रास्ते के बाहर हो जाते हो और ऐसा होना ही चाहिए, क्योंकि किसी भी बात के लिए मन समय लेता है और सांप देर नहीं लगाता है। मन से पूछे बिना ही छलांग लगानी पड़ती है। मन तो एक प्रक्रिया है, सांप मन से अधिक फास्ट है, तेज है। सांप प्रतीक्षा नहीं करेगा और तुम्हें यह सोचने का समय न देगा कि क्या करना है। अचानक ही उस समय मन एक ओर हो जाता है और सारी प्रक्रियाएं अ-मन के द्वारा संचालित होती हैं, तब शरीर अपने से कार्य करना प्रारंभ कर देता है। जब भी कभी कोई ऐसा खतरा आता है, तब ऐसा ही होता है। यही कारण है कि लोग खतरे के लिए इतना आकर्षण अनुभव करते हैं। किसी तेज भागती कार में एक घंटे में सौ मील या उससे भी अधिक रफ्तार से जाने में जो रोमांच और पुलक होती है, उसका क्या कारण है? तेज रफ्तार में गाड़ी चलाने पर जो रोमांच या पुलक का अनुभव होता है, उसके कारण उस तेज रफ्तार में मन रुक जाता है, मन कार्य करना बंद कर देता है, अ -मन की स्थिति आ जाती है, इसीलिए तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने का इतना आकर्षण और पुलक अनुभव होती है जब तुम हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से कार चलाते हो तो कहीं कुछ सोचने का समय ही नहीं होता है। उस समय बिना मन के ही कार्य करना होता है। अगर कुछ हो जाए और दिमाग अपना काम शुरू कर दे, तो तुम खतम ही हो जाओगे। एक भी क्षण बिना बरबाद किए तुरंत कुछ करना पड़ता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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