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________________ 'मन और शरीर के साथ तादात्म्य न बने -यह मैं अब तक समझ नहीं सका हूं।' यह प्रश्न पूछ कौन रहा है? .......ऐसा कैसे संभव है?' इसे तुरंत देखो कि यह प्रश्न पूछ कौन रहा है : 'ऐसा कैसे संभव है?' यह मन की ही चालबाजी है, यह मन ही है जो तुम्हारे ऊपर शासन करना चाहता है। अब यह मन ही है जो पतंजलि तक का भी उपयोग कर लेना चाहता है। अब मन कह रहा है, यह एकदम सत्य है। मैंने समझ लिया है कि तुम मन नहीं हो....।' और अगर एक बार इस बात की समझ आ जाए कि मैं मन नहीं हूं तो तुम अति –मन हो जाते हो। मन में लोभ उठता है, मन कहता है, अच्छा तो ठीक है, मुझे तो अति -मन होना है। फिर परम की प्राप्ति के लिए, आनंद के लिए लोभ उठ खड़ा होता है। फिर शाश्वत का, अनंत का, कि परमात्मा होना है इसका लोभ मन में उठ खड़ा होता है। मन कहता है, अब जब तक मैं अनंत को, शाश्वत को उपलब्ध न हो जाऊं, यह जान न लूं मुझे चैन नहीं मिल सकता कि यह है क्या।' मन पूछता है 'इसे कैसे उपलब्ध कर लूं?' स्मरण रहे, मन सदा यही पूछता है, किसी बात को कैसे करना है। यह जो 'कैसे ' है, यह मन का प्रश्न है। क्योंकि 'कैसे ' का अर्थ है. कोई विधि, कोई ढंग, कोई तरीका। कैसे ' का अर्थ है, मुझे वह तरीका वह विधि बताओ जिससे मैं शासन कर सकू? मैं योजनाएं बना सकू। इसके लिए मुझे कोई विधि दे दो। मन कोई भी विधि चाहता है 'बस, मुझे एक विधि 'दे दो और मैं इसे पूरा कर लूँगा।' और ध्यान रहे, होश की, जागरूकता की कोई विधि नहीं है। जागरूक होने के लिए तुम्हें जागरूक होना ही पड़ेगा। इसकी कोई टेकनीक या विधि नहीं है। प्रेम के लिए कौन सी विधि है? यह जानने के लिए कि प्रेम क्या है, प्रेम करना पड़ता है। तैरने की कौन सी विधि है? यह जानने के लिए कि तैरना क्या है, तैरना पड़ता है। निस्संदेह, शुरू -शुरू में तैरना थोड़ा ठीक से नहीं होता, बेतरतीब होता है। फिर धीरे -धीरे जब तैरना आ जाता है.. लेकिन फिर भी तैरकर ही सीखना होता है, इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। अगर कोई तुमसे पूछे कि साइकिल चलाने की क्या विधि है? और तुम साइकिल चलाते हो लेकिन अगर कोई पूछेगा तो तुम्हें कंधे ही उचकाने– पड़ेंगे। तुम कहोगे, बताना मुश्किल है। साइकिल कैसे चलाई जाती है इसकी विधि क्या है, बताना कठिन है। कैसे दो पहियों पर तुम स्वयं का संतुलन बैठाते हो? तुम कुछ न कुछ तो करते होओगे। तुम साइकिल पर संतुलन तो करते हो, लेकिन किसी विधि की तरह नहीं, बल्कि एक कौशल की तरह। विधि वह होती है जो सिखायी जा सकती है और किसी चीज
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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