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________________ प्रवचन 78 - जागरूकता की कोई विधि नहीं है प्रश्न-सार: 1-कृपया समझाएं कि मन और शरीर के साथ तादात्म्य कैसे न बने? 2-मेरी स्वयं के साथ और आपके साथ एकात्मकता बनते ही मन अहंकार की यात्रा पर निकल पड़ता है। कि मेरा कितना अच्छा विकास हो रहा है। कृपया आप मुझे सहारा देंगे? 3-झेन संत जो कि प्रत्येक सुबह एक ध्यान की भांति हंसते हैक्या आपको नहीं लगता है कि वे अपने हंसने को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते है। 4-भगवान, ऐसा लगता है कि मैं आपके दवारा सम्मोहित हो गया है। पहला प्रश्न: मन और शरीर के साथ तादात्म्य न बने- ऐसा संभव है यह मैं अब तक नहीं समझ सका हूं। मैं स्वयं से कहता हूं : तुम मन नहीं हो इसलिए भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है; स्वयं को प्रेम करो संतुष्ट रहो इत्यादि-इत्यादि। कृपया फिर से समझाएं कि तादात्म्य कैसे न बनाया जाए या कम से कम यह बताएं कि मुझे अब तक भी आपकी बात समझ क्यों नहीं आ पायी है?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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