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________________ अब तक रब्बी खामोश था, लेकिन जब उस पर जोर डाला गया तो वह बोला,'ही, मैं तो इकट्ठा किया गया सारा धन एक कंबल में रख देता हूं, और मैं उसे हवा में उछाल देता हूं। परमात्मा को जो रखना होता है वह रख लेता है और जो वह नहीं चाहता है उसे मैं रख लेता हूं।' धूर्त और चालबाज मत बनो -रब्बी मत बनो। क्योंकि अंत में तुम्हारा ही नुकसान होगा, परमात्मा का नहीं। अंतर्विकास के मार्ग में जो भी बाधा आती है. और बहुत सी बाधाएं आती भी हैं। आंतरिक पथ पर प्रत्येक क्षण नया अन्वेषण का होता है, हर क्षण कुछ न कुछ घटता रहता है -तुम तो उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हो, तुमने तो कभी उसकी मांग भी न की होगी। अंतर यात्रा के पथ पर अनेक भेंटें अस्तित्व की ओर से मिलती हैं लेकिन परमात्मा को या परम को वही उपलब्ध होता है जो इन भेंटों को वापस परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देता है। और अगर उन भेंटों को पकड़ने लगो, तो फिर विकास वहीं का वहीं रुक जाता है। तब फिर व्यक्ति उसी जगह रुक जाता है, वहीं ठहर जाता है। ते समाधावुपसर्गाब्यूत्थाने सिद्धयः। अगर तुम्हें समाधि की आकांक्षा है, अगर तुम्हें परम शाति चाहिए, परम मौन, परम सत्य चाहिए –तो किसी भी तरह की प्राप्ति से, उपलब्धि से जुड़ाव मत बना लेना –फिर चाहे वह इस लोक की हो या उस लोक की, मनोवैज्ञानिक हो या परा -मनोवैज्ञानिक हो, बौद्धिक हो या अंतर्बोध युक्त हो, कुछ भी हो, किसी भी उपलब्धि के साथ मोह मत जोड़ लेना। उसे परमात्मा के चरणों में समर्पित करते चले जाना और फिर बहुत कुछ घटेगा! तुम तो बस उसे परमात्मा के चरणों में अर्पित किए चले जाना। जब व्यक्ति सभी कुछ परमात्मा के चरणों में चढ़ा देता है यहां तक कि अपने को भी परमात्मा के चरणों में चढ़ा देता है, तब परमात्मा आता है। जब सभी कुछ परमात्मा के चरणों में चढ़ा दिया, उसी परम को वापस सौंप दिया, तो फिर परमात्मा अंतिम भेंट की तरह अंतिम उपहार की तरह चला आता है। और परमात्मा ही अंतिम उपहार है, अंतिम भेंट है। आज इतना ही।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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