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________________ जाओ। अगर व्यक्ति इन सुराखों से, इन इंद्रियों से बाहर आ जाए तो वह सर्वज्ञाता सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हो जाता है। और यही है प्रतिभा। 'इसके पश्चात......।' फिर वह श्रवण होता है, वह पार का होता है। वह श्रवण न तो बदधि द्वारा होता है, न ही अंतर्बोध के दवारा होता है, बल्कि वह श्रवण प्रतिभा के माध्यम से होता है - और ऐसा ही स्पर्श करने में, देखने में, स्वाद में और सूंघने में होता है। स्मरण रहे, जो भी व्यक्ति संबोधि को उपलब्ध होता है, वह पहली बार जीवन को उसकी समग्रता में, पूर्णता में जीता है। उपनिषद कहते हैं -तेन त्यक्तेन भंजिथ: -जिन्होंने त्यागा है, उन्होंने ही पाया है। यह बात एकदम विरोधाभासी मालम होती है कि जिन्होंने त्यागा है, उन्होंने ही पाया है। उन्होंने ही जीवन का आनंद उठाया है, उन्होंने ही जीवन को भोगा है।' शरीर की सीमाएं व्यक्ति को दरिद्र बना देती हैं। इंद्रियों से और शरीर से पार उठते ही व्यक्ति समृद्ध हो जाता है। जो भी व्यक्ति संबोधि को उपलब्ध हो जाता है –फिर वह आंतरिक रूप से दरिद्र नहीं रह जाता-वह बहुत ही अदभुत रूप से समृद्ध हो जाता है। वह परमात्मा हो जाता है। तो योग संसार के विरोध में नहीं है। असल में तुम्हीं संसार के विरोध में हो। और योग, आनंद, सुख के विरोध में नहीं है-तुम ही आनंद, सुख के विरोध में हो। और योग चाहता है कि तुम बाह्य सीमाओं के पार हो जाओ, सारे संसार की सीमाओं को छोड़कर असीम हो जाओ। अपने विराट अस्तित्व के साथ एक हो जाओ। 'ये वे शक्तियां हैं जो मन के बाहर होने से प्राप्त होती हैं, लेकिन ये समाधि के मार्ग पर बाधाएं हैं।' लेकिन पतंजलि इन सबके प्रति हमेशा सजग हैं' और वे तुम्हें बार-बार बताए चले जाते हैं, वे बार - बार उस केंद्र पर चोट करते चले जाते हैं जब तक कि व्यक्ति केंद्र तक पहुंच ही न जाए। 'कि श्रवण, दर्शन, आस्वाद, घ्राण संवेदन की शक्तियां भी।' खयाल रहे वे भी शक्तियां हैं, अगर बाहर की ओर जाना हो तो -लेकिन अगर भीतर जाना हो, तो यही शक्तियां बाधाएं बन जाती हैं। अगर व्यक्ति स्वयं के भीतर जा रहा हो, तो यही शक्तियां बाधा बन जाती हैं। जो व्यक्ति बाह्य संसार की ओर बढ़ रहा होता है, वह चंद्र से सूर्य की ओर से होता हुआ संसार में जा रहा होता है। और जो व्यक्ति स्वयं के भीतर जा रहा होता है, उसकी ऊर्जा सूर्य से चंद्र की ओर, और फिर चंद्र से भी पार की तरफ जा रही होती है। जो व्यक्ति अंतस की यात्रा पर जा रहा होता है, और
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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