SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस अंतर-आकाश को कैसे जाना जा सकता है? इसके लिए स्वार्थ में संयम प्रतिष्ठित करना होता है। धारणा, ध्यान, समाधि इन तीनों को आत्मा पर केंद्रित कर दो- भीतर की ओर मुड़ जाओ। पश्चिम में लोग बाहर की ओर ही भाग रहे हैं-तुम हमेशा बाहर की ओर ही भागते हो। भीतर मुड़ो। अपने चैतन्य को केंद्रीय बिंद तक ले आना होगा। विषय -वस्तु के बीच की भिन्नता को पहचानना होगा। जब भूख लगे - भख एक विषय है। फिर तमने भोजन कर लिया और भोजन करके संतुष्ट हो गए, तो एक प्रकार का सुख मिलता है –यह सुख की प्राप्ति भी एक तरह का विषय है। सुबह होती है - यह भी एक विषय है। सांझ होती है –यह भी एक विषय है। तुम वैसे ही रहते हो - भूख हो या न हो, जीवन हो या मृत्यु हो, दुख हो या सुख हो, तुम उसी भांति साक्षी बने रहते हो। लेकिन हम तो फिल्म देखते -देखते उसके साथ भी तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। यह मालूम होते हुए भी कि वहां पर केवल सफेद पर्दा है और कुछ भी नहीं है, उसके ऊपर कुछ छायाएं आ जा रही हैं। लेकिन तुम ने सिनेमाघर में बैठे लोगों को देखा है न? जब पर्दे पर कोई दुखद घटना घटती है तो कुछ लोग रोने लगते हैं, उनके आंसू बहने लगते हैं। देखो, पर्दे पर कुछ भी वास्तविक रूप से नहीं घट रहा है; लेकिन फिर भी आंसू आने लगते हैं। पर्दे पर कुछ छायाएं आ –जा रही हैं, जो कि सच नहीं हैं, जो कि झूठ हैं, आंसू लाने का कारण बन जाती हैं। किसी कहानी को पढ़ते -पढ़ते लोग उत्तेजित हो जाते हैं, या किसी नग्न स्त्री का चित्र देखकर कामुक हो जाते हैं। जरा सोचो तो, कुछ भी वहां पर वास्तविक नहीं है। कुछ थोड़ी सी पंक्तियां -और कुछ भी नहीं हैं। कागज पर थोड़ी सी स्याही फैली हई है। लेकिन उनकी कामवासना जाग्रत हो जाती है। यह मन की प्रवृत्ति है वह विषय -वस्तुओं के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है, उनके साथ एक हो जाता है। जब भी कभी विषय-वस्तुओं के साथ तुम्हारा तादात्म्य स्थापित हो, तो अधिक से अधिक जागरूक हो जाना और स्वयं को रंगे हाथों पकड़ लेना। जब भी कभी ऐसा हो, स्वयं को रंगे हाथों पकड़ लेना और विषय -वस्तुओं को गिरा देना। तब तुमको एक तरह की शाति का अनुभव होगा, तुम्हारे सभी आवेश, सभी उद्वेग जा चुके होंगे। जिस क्षण इस बात का बोध हो जाता है कि केवल एक पर्दा ही है और कुछ भी नहीं है, तो आखिर क्यों इतने आवेश और उत्तेजना में पड़ना, किसलिए संपूर्ण संसार ही एक पर्दा है –और जो कुछ भी वहां दिखाई दे रहा है, वह हमारी स्वयं की ही इच्छाओं का प्रक्षेपण है, और हमारी जो आकांक्षा होती है, वही उस पर्दे पर प्रक्षेपित हो जाती है और हम उसमें ही भरोसा करने लगते हैं। यह सारा संसार एक स्वप्न है, भांति है, माया है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy