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________________ तुम बुद्ध होना चाहते हो, तो बुद्ध के संबंध में सभी धारणाएं, सभी विचार गिरा दो। बुद्ध की हत्या 'कर दो! वे कहते हैं, अगर तुम बुद्ध का नाम भी लेते हो, तो तुरंत अपना मुंह धो लेना-वह शब्द ही गंदा है।' बौद्ध भिक्षु यह कैसे कह देते हैं? वे बड़े गजब के लोग हैं सच में ही अदभुत लोग हैं। और उनके इस कहने में, उनकी इस बात में सच में ही दम है। अगर तुम उनकी इस बात को समझ सकते हो तो और भी बहुत सी बातें समझ में आ सकती हैं। बोधिधर्म कहता है, सभी धर्मशास्त्रों में आग लगा दो-यहां तक कि बुद्ध के धर्मशास्त्रों में भी आग लगा दो।' केवल वेदों में ही नहीं, धम्मपद भी उसमें सम्मिलित है, उसमें भी आग लगा दो -सभी धर्मशास्त्रों में आग लगा दो। लिन–ची की एक बहुत ही प्रसिद्ध पेंटिंग, सारे धर्मशास्त्रों की होली जलाते हुए की है। और सच में उनकी बात में गहराई थी। वे क्या कर रहे थे? वे तो बस तुम से तुम्हारा मन छीन ले रहे थे। तुम्हारा वेद कहां है? वह शास्त्रों में नहीं है, वह तुम्हारे मन में है। तुम्हारा कुरान कहां है? वह तुम्हारे मन में है, वह शास्त्र में नहीं है। वह तुम्हारे मन के टेप में है। उन सभी को गिराकर, उनके बाहर हो जाओ। बदधि, मन प्रकृति का अंश है। वह तो केवल प्रतिबिंब ही है। वह लगता सत्य की भाति है, लेकिन ध्यान रहे, चाहे कितना ही सत्य की भांति लगे, फिर भी वह सत्य नहीं होता है। यह तो ऐसे ही है, जैसे पूर्णिमा की रात को शांत -शीतल झील में चांद का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता हो। झील में जब कोई लहर नहीं उठती है, तो प्रतिबिंब एकदम पूरा होता है, लेकिन फिर भी वह होता प्रतिबिंब ही है। और अगर प्रतिबिंब इतना सुंदर है, तो जरा सोचो वास्तविकता में वह कितना सुंदर न होगा। इसलिए प्रतिबिंब में ही उलझकर मत रह जाना। बुद्ध जो कहते हैं, वह प्रतिबिंब है। पतंजलि जो लिखते हैं, वह प्रतिबिंब है। जो मैं कह रहा हूं वह प्रतिबिंब है। उस प्रतिबिंब को ही पकड़कर मत बैठ जाना। अगर प्रतिबिंब इतना सुंदर है, तो फिर थोड़ा सत्य के लिए भी प्रयास करना। प्रतिबिंब से हटकर असली चांद की ओर बढ़ना। और मार्ग प्रतिबिंब के ठीक विपरीत है। अगर तुम प्रतिबिंब को ही देखते हो और प्रतिबिंब से ही सम्मोहित हो जाते हो, तो आकाश का चांद कभी नहीं देख सकोगे, क्योंकि वह तो एकदम विपरीत छोर पर है। अगर वास्तविक चांद को देखना हो, तो प्रतिबिंब से दूर हटना पड़ेगा-सभी धर्मशास्त्रों की होली जला देनी होगी, और बुद्ध की हत्या कर देनी होगी। एकदम विपरीत आयाम की ओर, एकदम विपरीत छोर की ओर बढ़ना होगा। तब कहीं जाकर सिर चांद की ओर उठता है; तब प्रतिबिंब को नहीं देखा जा सकता है। फिर तो प्रतिबिंब गायब ही हो जाता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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