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________________ ततः प्रातिभश्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता जायन्ते ।। 371/ इसके पश्चात अंतर्बोधयुक्त श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, आस्वाद और आधाण की उपलब्धि चली आती है। ते समाधावुपसर्गात्युत्थाने सिद्धयः ।। 3811 ये वे शक्तियां है जो मन के बाहर होने से प्राप्त होती है, लेकिन ये समाधि के मार्ग पर बाधाएं है। पतंजलि के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सूत्रों में से यह सूत्र है यह सूत्र कुंजी है। पतंजलि के योग सूत्र - का यह अंतिम भाग कैवल्यपाद' कहलाता है। कैवल्य का अर्थ होता है – समम्म बोनम परम मुक्ति, चेतना की परम स्वतंत्रता, जो असीम है, जिसमें कोई अशुद्धता नहीं है। यह कैवल्य शब्द अति सुंदर है, इसका अर्थ है निर्दोष एकांतता, इसका अर्थ है शुद्ध अकेलापन । इस अलोननेस शब्द को ठीक से समझ लेना । इसका अर्थ अकेलापन नहीं है। अकेलापन निषेधात्मक होता है अकेलापन तब होता है जब हम दूसरे के लिए उत्कंठित होते हैं, दूसरे के बिना हमें खाली खाली अनुभव होता है। अकेलेपन में दूसरे का अभाव महसूस होता है, लेकिन एकांत स्वयं का आत्मबोध है। - अकेलापन असुंदर है, एकांत अदभुत रूप से सुंदर है। एकांत उसे कहते हैं, जब व्यक्ति स्वयं के साथ इतना संतुष्ट होता है कि उसे दूसरे की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती कि दूसरा व्यक्ति चेतना से पूरी तरह चला जाता है – दूसरे व्यक्ति की भीतर कोई छाया नहीं बनती, दूसरा व्यक्ति कोई स्वप्न निर्मित नहीं करता, दूसरा व्यक्ति बाहर की ओर नहीं खींच सकता। अगर दूसरा व्यक्ति मौजूद हो तो वह निरंतर केंद्र से खींचता है। सार्त्र का प्रसिद्ध वचन है, पतंजलि ने इसे ठीक से पहचान लिया कि दूसरा नर्क है।' दूसरा नर्क न भी हो, लेकिन दूसरे की आकांक्षा नर्क का निर्माण कर देती है दूसरे की आकांक्षा ही नर्क है। और दूसरे की आकांक्षा का न होना ही अपनी मौलिक शुद्धता को पा लेना है। तब तुम होते हो, और समग्र रूप में होते हो और तुम्हारे अतिरिक्त और कोई भी नहीं होता, किसी का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इसे पतंजलि कैवल्य कहते हैं। और कैवल्य की ओर जाने वाला पहला चरण सर्वाधिक आवश्यक चरण है विवेक, दूसरा महत्वपूर्ण चरण है वैराग्य, और तीसरा है कैवल्य का बोध ।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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