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________________ पांचवां प्रश्न: हम अपने मन को कैसे गिरा सकते हैं जबकि आप प्रवचनों में दिलचस्प बातें सुनाकर मन में खलबली मचाते रहते हैं। म मन को अपने से नहीं गिराते हो, तो मैं उसे और भारी और बोझिल बनाता जाऊंगा ताकि वह अपने से ही गिर जाए -तुम उसे पकड़ ही न सको। इसी आयोजन के लिए तो यह मेरे प्रवचन हैं। मैं तुम पर रोज -रोज बोझ डालता ही चला जाता हं.. मैं उस अंतिम तिनके की प्रतीक्षा में हं? जिससे ऊंट किसी भी करवट के सहारे बैठ ही न सके। यह तुम्हारे और मेरे बीच एक प्रतियोगिता है। आशा यही है कि तुम्हारी जीत नहीं हो सकेगी। छठवां प्रश्न: मेरे प्यारे-प्यारे भगवान जब मैं बुद्धत्व का अनुभव करूं: क-क्या मैं आप से कहूं? ख-क्या आप मुझ से कहेंगे? ग-क्या यह प्रश्न मेरा अहंकार पूछ रहा है? तानों के लिए – नहीं। जब व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो बुद्धत्व ही सब कुछ कह देता है, सब कुछ प्रकट कर देता है। तुम्हें मुझसे कहने की कोई जरूरत नहीं, मुझे तुमसे कहने की भी कोई जरूरत नहीं। बुद्धत्व स्वयं ही प्रकट हो जाता है, उसके लिए किसी प्रमाण -पत्र की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वह स्वयं ही प्रकट हो जाता है, जैसे कि अचानक रात्रि में कोई प्रकाश की किरण उतर आए। उसके लिए कुछ भी कहने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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