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________________ अहंकार सभी प्रकार की परिस्थितियों में पोषित होता मालूम पड़ता है और इसे सब से अधिक पोषण और शक्ति तथाकथित आध्यात्मिक परिस्थितियों से मिलती है। मैं संन्यास लेना चाहता हूं लेकिन मैं अहंकार की सभी घटनाक्रम को तीव्र सशक्त ढंग से घटित होते हुए अभी से अनुभव कर सकता हूं अहंकार को चाहे पोषित करो या इससे बचने की कोशिश करो इससे पीछे हटो या इसका सामना करो अहंकार हर ढंग से पोषण प्राप्त कर लेता है तो ऐसे में क्या करें? प्रश्न पूछा है माइकल वाइज नै। बी वाइज, 'बुद्धिमान बनो '- मेरी बात समझने की कोशिश करो। अपना अहंकार मुझे दे दो, यही तो संन्यास है। अगर तुम सन्यास लेने की सोचते हो, तो अहंकार इसके द्वारा अपने को भर ले सकता है। मैं तुम्हें संन्यास देता हं, तुम बस उसे स्वीकार कर लो। तुम्हें केवल इतना ही साहस करना है और तब अहंकार का अस्तित्व शेष नहीं रहेगा क्योंकि तुम्हारे द्वारा तो संन्यास लिया नहीं गया है। जब भी तुम मेरे पास आते हो, तो पहले मैं तुम्हें संन्यास देने का प्रयास करता हूं। लेकिन ऐसे बहुत से मूढ़ लोग भी हैं जो कहते हैं, 'हम सोचेंगे।' वे समझते हैं कि वे बहुत होशियार हैं। वे इस बारे में सोचना शुरू कर देते हैं - "किसी न किसी दिन वे आएंगे' -और वे आते भी हैं और वे संन्यास के लिए कहते हैं और मैं उन्हें संन्यास दे देता हूं। लेकिन जब पहले मैं उनको संन्यास दे रहा था, तो वह बिलकुल ही अलग बात होती। तब संन्यास मेरी ओर से एक भेंट होती है, तुम्हारी ओर से लिया हुआ नहीं होता। अगर तुम कुछ भी करते हो, तब तुम संन्यास भी लेते हो, तो अहंकार उसके माध्यम से भी पष्ट होता है। और जब संन्यास. मेरी ओर से दी गई एक भेंट होती है, तब अहंकार का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। लेकिन तुम मेरी ओर से दी गई भेंट को चूक जाते हो और फिर तुम दुबारा आकर संन्यास की मांग करते हो, तब उसका सारा सौंदर्य ही समाप्त हो जाता है। तब तुम अपने निर्णय से संन्यास लेते हो; तब अहंकार बीच में खड़ा हो सकता है। अगर तुम संन्यास लेना भी मेरे ऊपर छोड़ दो, तो फिर कोई सवाल ही नहीं है -तब वह मेरी समस्या है। तम्हें उस बारे में चिंता लेने की कोई जरूरत नहीं है। अपना अहंकार मुझे सौंप दो और भूल जाओ उसके बारे में और जीना शुरू करो, और मैं तुम्हारे अहंकार को सम्हाल लूंगा। तो माइकल वाइज; बी वाइज - बदधिमान बनो।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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