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________________ पक्षी हैं, लेकिन अब उनकी भाषा समझ आने लगती है। तब अचानक उनके साथ एक तरह का संप्रेषण होने लगता है, अकस्मात ही उनके साथ एक तरह का संवाद घटित होने लगता है। बुद्धि की-अपेक्षा अंतर्बोध सत्य के अधिक निकट होता है, क्योंकि वह हमें मानवीय बना देता हैअधिक मानवीय बना देता है –ऐसा बुद्धि से संभव नहीं है। और फिर आती है प्रतिभा, जो उन दोनों के भी पार होती है –अति अंतर्बोध। उसके विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता? क्योंकि जो कुछ भी कहा जा सकता है वह या तो सूर्य की भाषा में, पुरुष की भाषा में कहा जा सकता है, या उसे चंद्र की भाषा में, स्त्री की भाषा में कहा जा सकता है। या तो उसकी व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जा सकती है, या उसे काव्य के ढंग से कहा जा सकता है। लेकिन प्रतिभा की व्याख्या करने का तो कोई उपाय ही नहीं है। वह इन सब के पार होती है। उसे अनभव किया जा सकता है, उसे तो केवल जीया जा सकता है, यही प्रतिभा को जानने का एकमात्र तरीका है। लोग गौतम बुद्ध के पास आकर उनसे पूछते, 'हमें परमात्मा के बारे में कुछ बताएं।' और बुद्ध कहते, 'चुप, शांत और मौन हो जाओ। मेरे साथ हो रहो-और तुम्हें भी उसका अनुभव हो जाएगा।' यह प्रश्न कुछ ऐसा नहीं है जिसे पूछा जा सके और जिसका उत्तर दिया जा सके। और यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान किया जा सकता हो। यह तो ऐसा रहस्य है जिसे जीना होता है। यह तो परम आनंद की अवस्था है। यह तो एक अदभुत और अपूर्व अनुभव है। बदधि इस ढंग से कार्य करती है एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन गांव की आटे की चक्की पर गया था। वहा पर वह हर किसी के गेहूं में से मुट्ठी भर-भर कर अपना थैला भरता जा रहा था। किसी ने नसरुददीन से पूछा, 'मुल्ला, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?' मुल्ला ने उत्तर दिया, 'क्योंकि मैं मूढ हूं।' 'अगर तुम मूढ़ ही हो तो दूसरों के थैलों में अपना गेहूं क्यों नहीं डालते?' मुल्ला ने जवाब दिया, 'फिर तो मैं और भी ज्यादा मूढ़ हो जाऊंगा।' बुद्धि चालाक और स्वार्थी होती है। बुद्धि सदा दूसरों का शोषण करने की कोशिश करती है। अंतर्बोध ठीक इसके विपरीत होता है; वह किसी का शोषण नहीं कर सकता।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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