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________________ क्योंकि जो लोग कुछ सिद्ध करके दिखाने का प्रयास करते हैं वे सिद्ध करने के द्वारा अपनी रक्षा कर रहे होते हैं। जीसस अपना बचाव नहीं कर रहे थे। उन्होंने परमात्मा से बस यही कहा, 'तेरा प्रभुत्व रहे, तेरी मर्जी पूरी हो।' यही था उनका चमत्कार। और उन्होंने परमात्मा से कहा, 'हे परमात्मा! तू इन लोगों को क्षमा कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।' यही था चमत्कार - कि वे उनके लिए भी प्रार्थना कर सकते थे जो उनकी हत्या कर रहे थे। करुणावश वे उनके लिए भी प्रार्थना कर सकते थे। जीसस ने परमात्मा से प्रार्थना की, 'हे परमात्मा! अपने निर्णय को एक ओर उठाकर रख दो, अपने निर्णय को हटा दो और मेरी बात सुनो। यह लोग निर्दोष हैं, यह लोग नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। यह लोग अज्ञानी हैं। कृपया उन पर क्रोध न करें, उन पर नाराज न होए, इन्हें माफ कर देना।' यही था चमत्कार । स्त्रियां इसे देख सकती थीं, क्योंकि उन्हें किसी चमत्कार की आकांक्षा न थी । बुद्धि हमेशा कुछ न कुछ मांग ही करती रहती है, अंतबध हमेशा खुला हुआ, ओपन रहता है। उसे किसी विशेष चीज की खोज नहीं होती, वह तो बस केवल खुली आख से देखता है - वहां तो एक अंतर्दृष्टि होती है। अंतर्बोध का यही अर्थ है। जब जीसस तीन दिन के बाद पुनः प्रकट हुए, तो पहले वे अपने पुरुष शिष्यों के पास गए। वे उनके साथ - साथ चले, उन्होंने उनसे बात की, लेकिन फिर भी वे लोग उन्हें पहचान नहीं सके। उन्होंने तो यह मान ही लिया था कि जीसस मर चुके हैं जीसस की मृत्यु हो गई है। सच तो यह है वे लोग दुखी हो रहे थे कि 'हमने अपने जीवन के इतने वर्ष इस आदमी के साथ यूं ही व्यर्थ गंवा दिए।' और तब वे निश्चित ही किसी चमत्कारिक, किसी बाजीगर की तलाश में होंगे, वे जरूर किसी ऐसे ही आदमी की तलाश में रहे होंगे और जीसस उनके साथ-साथ चले, उनसे बातचीत की और वे लोग थे कि जीसस को पहचान ही न सके। फिर जीसस स्त्रियों के पास गए और जब वे उनके पास गए और मेरी मेग्दालिन ने उन्हें देखा तो वह दौड़कर आयी वह जीसस के गले लग जाना चाहती थी। उसने तुरंत जीसस को पहचान लिया। और उसने पूछा तक नहीं, कैसे यह सब हुआ? -तीन दिन पहले आपको सूली लगी थी।' अंतबोध और अंतर्भाव 'कैसे' और 'क्यों की बात ही नहीं करता है। वह तो बस स्वीकार कर लेता है उसमें तो गहन और समग्र स्वीकृति होती है। - - - अगर तुम प्रेम से भरे वातावरण में रहते हो और तुम्हें ऐसा वातावरण अपने चारों ओर निर्मित करना ही होता है और दूसरा तो कोई ऐसा तुम्हारे लिए करेगा नहीं। लोगों को प्रेम करो, ताकि वे तुम्हें प्रेम कर सकें। लोगों के प्रति प्रेममय रहो, ताकि प्रेम फिर से उनसे प्रतिबिंबित हो सके। जिससे प्रेम की प्रतिध्वनि वापस तुम तक लौट - लौट आए। लोगों से प्रेम करो, जिससे फिर से तुम पर प्रेम की वर्षा हो और जब तुम्हारा अंतबोध कार्य करना प्रारंभ कर देगा तो फिर ऐसी चीजें दिखाई पड़ने लगेगी जिन्हें तुमने पहले कभी नहीं देखा था और संसार वही का वही रहता है, लेकिन उसमें नए अर्थ दिखाई देने लगते हैं। फूल वही रहते हैं, लेकिन उसमें कुछ नया ही रहस्य प्रकट होने लगता है। वही
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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