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________________ मन में स्वर्ग की आशा और वहा के आनंद की कल्पना करते हुए गिन्सबर्ग उठा और क्षमा मांगते हुए बोला, 'मिस लेविन, मुझे अब जाना चाहिए। मुझे एक बहुत जरूरी काम से जाना है।' और मिस लेविन बिस्तर में ही पड़े -पड़े उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और बहुत ही मीठे स्वरों में बोली, 'ओह मिस्टर गिन्सबर्ग, डार्लिंग तुमने आज मेरे लिए कितना अच्छा काम किया है।' कितना अच्छा काम! बेचारा गिन्सबर्ग। अच्छाई के इतने अधिक अभ्यस्त मत हो जाना। आदतो से इतने ज्यादा मत जुड़ जाना कि फिर मशीन की तरह काम करने लग जाओ। मत पूछो कि ....... क्षण-प्रतिक्षण वर्तमान में जीने की आदत कैसे बनायी जाए?' इसका. आदत से कोई लेना-देना नहीं है, इसका संबंध तम्हारी जागरूकता से, तम्हारे होश से, तम्हारे बोध से है। इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। अतीत जा चुका होता है, भविष्य अभी आया नहीं है। क्या तुम उस अतीत में जी सकते हो जो कि जा चुका है? कैसे तुम उसमें जी सकते हो? क्या तुम भविष्य में जी सकते. हों, जो अभी आया ही नहीं है? कैसे तुम उसमें जी सकते हो? यह एकदम सीधी और व्यावहारिक समझ की बात है कि केवल वर्तमान के क्षण में ही जीवन संभव है। इसे आदत नहीं बनाना है। इसका धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है; इसका संबंध तो तुम्हारे विवेक से है। अतीत जा चुका है, तो कैसे तुम अतीत में जी सकते हो? भविष्य अभी आया नहीं है, तो कैसे तुम भविष्य में जी सकते हो? बस .केवल थोड़ी सी समझ और बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है। केवल वर्तमान का ही अस्तित्व होता है। जो कुछ भी है, वर्तमान ही है, और कुछ भी नहीं है। इसलिए अगर तुम वर्तमान को जीन, ..... चाहते हो, तो इसे जी लो। अगर तुम अतीत के और भविष्य के बारे में सोच रहे हो, तो तुम वर्तमान के क्षण को व्यर्थ ही गंवा रहे हो-और जब यही वर्तमान का क्षण भविष्य के रूप में था, तो तुम इसे लेकर तरह-तरह की योजनाएं बना रहे थे। और अब जब यह क्षण तुम्हें उपलब्ध है, तुम्हारे समक्ष मौजूद है; तो तुम उसके प्रति उपलब्ध नहीं हो, तुम मौजूद नहीं हो। तुम या तो अतीत की स्मृतियों में खोए रहते हो या भविष्य के स्वप्न संजोते रहते हो, तुम वर्तमान के क्षण में कभी नहीं होते हो। अतीत की स्मृतियों को और भविष्य की परिकल्पना को गिर जाने दो। यहीं और अभी में जीओ। और इसका आदत से कोई संबंध नहीं है। केवल आदतवश तुम अभी और यहीं में कैसे जी सकते हो? आदत आती है अतीत से -आदत तम्हें अतीत की ओर धकेलती है, अतीत की ओर खींचती है। या तो तुम आदत को ही एक अनुशासन बना सकते हो –लेकिन तब तुम भविष्य के लिए सोच रहे होते हो। तुम प्रतीक्षा करते हो: 'आज मैं आदत का निर्माण करूंगा और कल मैं उसका आनंद उठाऊंगा।' लेकिन फिर तुम भविष्य में ही जी रहे होते हो।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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