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________________ लगेंगे और आपके खिलाफ चुगली प्रारंभ कर देंगे। कुल मिलाकर आपके कारण स्वर्ग में फूट पड़ जाएगी और अशुभ काम करने वाले लोग आ जाएंगे।' बेचारा गिन्सबर्ग बोला, 'तो मुझे क्या करना चाहिए। मुझे बताएं कि मैं क्या करूं?' लेखा-जोखा रखने वाला स्वर्गदूत बोला, 'मैं तुम्हें बताता हूं कि क्या करना है। ऐसा नियम तो नहीं है, लेकिन मेरा काम इससे चल सकता है। मैं तुम्हारे विवरण के अंतिम पृष्ठ का लेखा मिटा दूंगा और तुम्हें छह घंटे और दिए जाते हैं। तुम्हें एक और अवसर दिया जाता है। गिन्सबर्ग, कृपया आप कोई पाप कर लेना, कोई सचमुच का पाप -और फिर वापस लौट आना।' स्वर्गदूत के यह कहते ही गिन्सबर्ग उसकी बात को अमल करने के लिए चल पड़ा। गिन्सबर्ग ने अचानक अपने को पाया कि वह अपने शहर में पहुंच गया है। उसके पास कुछ ही घंटे थे, जिनमें उसे कोई पाप करके अपने अच्छे कार्यों की श्रृंखला का तोड़ना था। और वह भी ऐसा करने के लिए उत्सुक था, क्योंकि वह स्वर्ग जाना चाहता था। लेकिन उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह करे तो कौन सा पाप करे? उसने हमेशा अच्छे काम किए थे, वह जानता ही नहीं था कि पाप कैसे करना। खूब सोचने-विचारने के बाद उसे खयाल आया कि अगर ऐसी स्त्री से-जो अपनी पत्नी न हो, उससे काम–संबंध बनाया जाए, तो ऐसा करना पाप होगा। उसे याद आया कि एक अविवाहित स्त्री, जिसका यौवन बीत चुका था, उसकी ओर बड़े ध्यान से देखा करती थी, और उसने हमेशा उस स्त्री के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार ही किया था, क्योंकि वह तो बहुत ही नैतिक आदमी जो था। अब वह उसकी - उपेक्षा न करेगा। और समय तो तेजी से बीतता जा रहा था। बहुत ही सधे हुए कदमों से गिन्सबर्ग मिस लेविन के घर की ओर चल पड़ा और उसने उसका द्वार खटखटाया। स्त्री ने द्वार खोला। गिन्सबर्ग को द्वार पर खड़ा हुआ देखकर वह एकदम चकित रह गयी। फिर भी साहस बटोरकर बोली, 'अरे मिस्टर गिन्सबर्ग, आप! मैंने तो सुना था कि आप बीमार हैं -और यह भी सुना था कि आप मृत्यु -शय्या पर हैं। लेकिन आप तो पहले जैसे ही एकदम ठीक दिख रहे हैं।' गिन्सबर्ग ने कहा, 'मैं एकदम ठीक हूं। क्या मैं अंदर आ सकता हूं?' 'क्यों नहीं, मिस लेविन बड़े ही उत्साह से बोली और उसके अंदर आते ही दरवाजा बंद कर दिया। फिर इसके बाद जो होना था वह हुआ। उन्हें पाप-रत होने में जरा भी देर न लगी। और मिस्टर गिन्सबर्ग की आंखों में उनकी प्रतीक्षा करता हुआ स्वर्ग था और स्वर्ग में लोग उत्साहपूर्वक उनकी राह देख रहे थे कि उन्होंने कौन से पाप का अनुभव लिया है। पाप को ठीक से करने की सुन में, जिससे कि लेखा-जोखा रखने वाले स्वर्गदूत एकदम संतुष्ट और प्रसन्न हो जाएं, गिन्सबर्ग ने पूरा खयाल रखा कि किसी तरह की कोई जल्दबाजी न होने पाए। वह तब तक पाप करता ही रहा जब तक कि उसे अपने भीतर से यह भाव नहीं उठा कि उसका समय खतम होने को है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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