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________________ कभी इस प्रयोग को करके देखना। जब कभी तम्हें भूख लगे तो अपनी आंखें बंद कर लेना और अपने कंठ तक गहरे उतर जाना फिर ध्यान से देखना। तुम देखोगे कि कंठ तुम से अलग है। और जैसे ही तुम देखोगे कि कंठ तुम से अलग है, तो शरीर यह कहना बंद कर देगा कि शरीर भूखा है। शरीर भूखा हो नहीं सकता है, शरीर के साथ तादात्म्य ही भूख को निर्मित करता है। 'कूर्म -नाड़ी नामक नाड़ी पर संयम संपन्न करने से, योगी पूर्ण रूप से थिर हो जाता है।' कूर्म -नाड़ी प्राण की, श्वास की वाहिका है। अगर हम चुपचाप, शांतिपूर्वक अपने श्वसन पर ध्यान दें, किसी भी ढंग से श्वास की लय न बिगड़े, न तो श्वास तेज हो और न ही धीमी हो, बस उसे स्वाभाविक और शिथिल रूप से चलने दें। तब अगर हम केवल श्वास को देखते रहें, तो हम धीरे - धीरे थिर होने लगेंगे। फिर भीतर किसी तरह की कोई हलन-चलन नहीं होगी। क्यों? क्योंकि सभी हलन -चलन, गति श्वास के दवारा ही होती है। श्वास से ही पूरी की पूरी गति होती है। श्वास ही सारी हलन -चलन और गतियों का संचरण करती है। जब श्वास रुक जाती है, तो व्यक्ति मर जाता है-फिर वह चल-फिर नहीं सकता, हिल-इल नहीं सकता। अगर व्यक्ति निरंतर श्वास पर ही संयम करता रहे, कूर्म -नाड़ी पर ही केंद्रित रहे, तो धीरे - धीरे एक ऐसी अवस्था आ जाएगी जहां पर श्वास करीब-करीब रुक ही जाती है। योगी इस ध्यान की प्रक्रिया को दर्पण के सामने करते हैं, क्योंकि योगी की श्वास धीरे – धीरे इतनी शांत हो जाती है कि उसे श्वास चल रही है या नहीं इसकी प्रतीति भी नहीं रह जाती है। अगर दर्पण पर श्वास की कुछ धुंध जा जाए, तो ही उन्हें मालूम पड़ता है कि उनकी श्वास चल रही है। कई बार योगी ध्यान में इतने शांत और थिर हो जाते हैं कि उन्हें यह मालूम ही नहीं पड़ता है कि वे भी जिंदा हैं या नहीं। ध्यान की गहराई में तुम्हें भी यह अनुभव कभी न कभी घटेगा। उससे भयभीत मत होना। उस समय श्वास लगभग रुक सी जाती है। जब होश अपनी परिपूर्णता पर होता है, उस समय श्वास लगभग ठहर जाती है, लेकिन उस समय परेशान मत होना, भयभीत मत होना। वह कोई मृत्य नहीं है, वह तो केवल शांत अवस्था है। योग का संपूर्ण प्रयास ही इस बात के लिए है कि व्यक्ति को ऐसी गहन शांत अवस्था तक ले आए कि फिर उस शांति को कोई भी भंग न कर सके। चेतना ऐसी शांत अवस्था को उपलब्ध हो जाए कि फिर उसकी शांति भंग न हो सके। मैंने सुना है कि एक बार रास्ते चलते किसी पागल ने एक दुकान पर जाकर एक व्यापारी से पूछा, 'तुम दिनभर सुबह से लेकर रात तक यहां पर बैठे कैसे रहते हो?' 'लाभ कमाने के लिए।' पागल आदमी ने पूछा, 'लाभ क्या होता है?'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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