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________________ बात करता है, लेकिन आधुनिक शरीर -विज्ञान उससे सहमत नहीं है। क्योंकि आधुनिक शरीरविज्ञान मृत व्यक्ति की लाश के आधार पर निर्णय लेता है, और योग का सीधा संबंध जीवन से है। थोड़ा सोचो। जब बिजली तारों से होकर गुजर रही हो ' उस समय अगर तुम तारों को काट दो, तो तुम्हें एक तरह का अनुभव होगा। और जब बिजली तारों से नहीं गुजर रही हो, उस समय तारों को काटो, तो तुम्हें दूसरी तरह का अनुभव होगा। और यह दोनों अनुभव एक -दूसरे से एकदम अलग होंगे। तुम मृत शरीर की चीर -फाड़ कर सकते हो, जीवित शरीर की इस तरह से चीर -फाड़ नहीं की जा सकती है, क्योंकि उसकी चीर –फाड़ करने में ही व्यक्ति मर जाएगा। इसलिए एक न एक दिन शरीर-वैज्ञानिकों को योग के अन्वेषण से सहमत होना ही पड़ेगा कि अगर जीवंत शरीर को जानना है, तो उसे उसी समय जाना जा सकता है जब उसमें विदयुत तत्व प्रवाहित हो रहे हों, जब उसमें प्राणों का संचार हो रहा हो। और यह केवल स्वयं के भीतर उतरकर ही जाना जा सकता है कि शरीर क्या है, और उसकी कैसी व्यवस्था है। अगर किसी मृत शरीर के संबंध में जानना हो, उसमें कुछ खोजना हो, तो किसी ऐसे घर में जाना जिसका मालिक घर में न हो। वहा तुम्हें थोड़ा-बहुत फर्नीचर और सामान पड़ा हुआ मिल जाएगा, लेकिन वहा पर कोई जीवित आदमी न होगा। जब घर का मालिक घर में हो, तब उसके घर में जाओ, तो उस आदमी की उपस्थिति पूरे घर में होती है। ऐसे ही जब कोई व्यक्ति जीवंत होता है, तो उसकी जीवंतता प्रत्येक कोषिका को गुणात्मक रूप से कुछ भिन्न बना रही होती है। जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो बस केवल एक मृत शरीर ही पड़ा होता है, केवल पदार्थ ही पड़ा रह जाता है। कंठ पर संयम संपन्न करने से क्षुधा व पिपासा की अनुभूतिया क्षीण हो जाती हैं।' ये आंतरिक अन्वेषण हैं। योग जानता है कि अगर हमको भूख लगती है, तो भूख पेट में ही अनुभव नहीं होती है। जब प्यास लगती है, तो वह ठीक –ठीक गले में ही अनुभव नहीं होती। पेट मस्तिष्क को भूख की सूचना देता है, और फिर मस्तिष्क हम तक इसकी सूचना पहुंचाता है, उसके पास कुछ अपने संकेत होते हैं। उदाहरण के लिए, जब हमें प्यास लगती है, तो मस्तिष्क ही गले में प्यास की अनुभूति को जगा देता है। जब शरीर को पानी चाहिए होता है, तो मस्तिष्क गले में प्यास के लक्षण जगा देता है, और हमको प्यास लगने लगती है। जब हमें भोजन चाहिए होता है, तो मस्तिष्क पेट में कुछ निर्मित करने लगता है और भूख सताने लगती है। लेकिन मस्तिष्क को बड़ी आसानी से धोखा दिया जा सकता है पानी में शक्कर घोलकर पी लो और भूख शांत हो जाती है। क्योंकि मस्तिष्क केवल शक्कर की ही बात समझ सकता है। तो इसलिए अगर शक्कर खा लो, या पानी में शक्कर घोलकर पी लो, तो तुरंत मस्तिष्क को यह लगने लगता है कि अब कुछ और नहीं चाहिए; भूख मिट जाती है। इसीलिए जो लोग बहुत ज्यादा मीठे पदार्थ खाते हैं
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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