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________________ पिरोए रखने के लिए जरूर कहीं कोई धागा भी होगा, वरना हम बहुत पहले ही बिखर गए होते। हमारा अस्तित्व तो हमेशा रहता है। तो वह कौन सा धागा है, वह कौन सा ध्रुव तारा है? वह हमारे भीतर का स्थायी तत्व क्या है? धर्म की पूरी की पूरी खोज यही तो है कि व्यक्ति के भीतर शाश्वत और स्थायी तत्व कौन सा है। अगर हम नश्वर के साथ ही संबंध बनाए रखते हैं, तो हम संसार में जीते हैं। जैसे ही हम अपना ध्यान अपने भीतर की शाश्वतता पर केंद्रित कर देते हैं, हम धार्मिक होने लगते हैं। साक्षी हो जाओ, विटनेस हो जाओ। तुम अपने क्रोध के साक्षी हो सकते हो। तुम अपनी उदासी के साक्षी हो सकते हो। तुम अपने संताप के साक्षी हो सकते हो। तुम अपने आनंद के भी साक्षी हो सकते हो। कोई सी भी भाव दशा हो, साक्षीभाव वही का वही रहता है। उदाहरण के लिए, रात को हम सोते हैं। दिन तो जा चुका है और जिस छवि को लेकर हम दिनभर घूमते रहे –कि मैं कौन हूं क्या हूं –वह भी रात्रि में सोने में खो जाती है। दिन में मैं बहुत ही धनी आदमी हो सकता हूं लेकिन रात सपने में भिखारी हो सकता हूं। सम्राट अपने सपनों में भिखारी बन जाते हैं, भिखारी अपने सपनों में सम्राट बन जाते हैं क्योंकि सपना एक परिपूर्ति होता है। यहां तक कि कई बार सम्राट भी भिखारियों के प्रति ईर्ष्या और जलन अनुभव करते हैं, क्योंकि भिखारी सड़कों पर स्वतंत्र रूप से, मस्ती में घूमते ' हैं जैसे उन्हें किसी बात से कुछ लेना -देना नहीं है। और फिर भी पूरी दुनिया का आनंद उठा सकते हैं। और फिर वह धूप का, सूरज की किरणों का आनंद ले सकता है। एक सम्राट तो वैसा नहीं कर सकता, उसे तो दूस से काम करने होते हैं। वह तो हमेशा व्यस्त होता है। सम्राट देखता है कि भिखारी रात्रि में चांद-तारों के नीचे मजे से गीत गा रहे हैं। एक सम्राट तो ऐसा कर नहीं सकता, सम्राट को ऐसा करना शोभा नहीं देता है। तो वे भिखारियों से ईर्ष्या अनभव करने लगते हैं। सम्राट रात में यही स्वप्न देखते हैं कि वे भिखारी बन गए हैं, भिखारी स्वप्न देखते हैं कि वे सम्राट हो गए हैं, क्योंकि भिखारी भी सम्राट से ईर्ष्या करते हैं। वे महलों के ऐश्वर्य को, धन-वैभव को, वहां चलते आमोद -प्रमोद को देखते रहते हैं। भिखारी भी चाहते हैं कि उन्हें यह सब मिल जाए। तो जीवन में जो कुछ भी नहीं मिलता है, जिसका हमारे जीवन में अभाव होता है, वे सभी चीजें हमारे स्वप्नों में आती रहती हैं, सपने परिपूरक होते हैं। अगर स्वप्नों का ठीक-ठीक अध्ययन किया जाए, तो यह मालूम किया जा सकता है कि जीवन में क्या-क्या कमी है। जब जीवन में किसी भी चीज की. कमी नहीं रह जाती, तो तत्क्षण स्वप्न खो जाते हैं,स्वप्न बिदा हो जाते हैं। इसलिए संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति सपने नहीं देख सकता है, उसे सपने आते ही नहीं। स्वप्न देखना उनके लिए असंभव होता है, क्योंकि संबद्ध व्यक्ति को किसी चीज का कोई अभाव होता ही नहीं है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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