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________________ गति के साथ ही समय की आवश्यकता होती है, रुकने के लिए, ठहरने के लिए समय जरूरी नहीं है। अगर हम गतिवान होते हैं तो उसका कहीं प्रारंभ होगा तो कहीं अंत भी होगा। सारी गतिशीलताओ का प्रारंभ भी होता है और अंत भी होता है, उनका जन्म भी होता है और मृत्यु भी होती है। लेकिन अगर किसी प्रकार की कोई गति न हो, तो न तो प्रारंभ ही होता है, और न ही अंत होता है तब न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु होती है। तो हमारे भीतर वह ध्रुव तारा कहां है? उसे ही योग साक्षी कहता है, विटनेस कहता है। साक्षी ही है हमारे भीतर का ध्रुव तारा । तो पहले अपना संयम सूर्य – ऊर्जा पर ले आओ, क्योंकि साधारणतया व्यक्ति जैविक रूप से वहीं पर जीता है। वहीं तुम अपने को पा सकते हो, जो कि पहले से ही है फिर उस सूर्य ऊर्जा को चंद्र ऊर्जा में रूपांतरित करना है और शीतल, एकाग्रचित्त और शांत होते जाना है। सभी तरह की उत्तेजनाओं को, उत्ताप को, बिदा होने दो, ताकि तुम अंतर - आकाश को देख सको। और फिर पहली बात जो जानने की होती है. वह यह है कि इन सबको देखने वाला कौन है? इन सबको जो देखता है वही तो है ध्रुव तारा, क्योंकि द्रष्टा ही तो भीतर एकमात्र अचल थिर और देखने वाला है। इसे ऐसे समझने की कोशिश करो। तुम क्रोधित होते हो, लेकिन तुम हमेशा-हमेशा के लिए क्रोध में नहीं रह सकते हो। यहां तक कि कितना ही बड़े से बड़ा क्रोधी आदमी हो, वह भी थोड़ा – बहुत तो हंसता ही है, उसे हंसना ही पड़ता है। वह क्रोध की अवस्था स्थायी हो नहीं सकती। उदास से उदास आदमी भी मुस्कुराता है, और जो आदमी हमेशा हंसता रहता है, वह भी कई बार रोता है, चीखता है, चिल्लाता है। आदमी की भावदशा और संवेदनाएं हमेशा एक जैसी नहीं रहती है इसीलिए तो अंग्रेजी में इसे इमोशंस कहते हैं, यह आया है मोशन से, यानी गति से। वे गतिशील रहती हैं, मोशन में रहती हैं, इसीलिए वे इमोशंस कहलाती हैं। हमारी भावदशाएं हमेशा बदलती रहती हैं। अभी हम उदास हैं, तो दूसरे ही क्षण प्रसन्न हो जाते हैं। अभी हम क्रोधित हैं, तो दूसरे क्षण ही बहुत करुणावान हो जाते हैं। अभी प्रेमपूर्ण हैं तो दूसरे ही क्षण घृणा से भर जाते हैं सुबह सुंदर और सुहावनी है तो सांझ कुरूप, असुंदर और बोझिल हो जाती है। इसी भांति जीवन चलता जाता है। लेकिन यह हमारा वास्तविक स्वभाव नहीं है, क्योंकि इन सभी परिवर्तनों के पीछे कोई ऐसा धागा तो होना ही चाहिए जो इन सबको थामे रहे। जैसे किसी माला में पिरोए हुए फूल तो दिखायी पड़ते हैं, लेकिन धागा दिखायी नहीं पड़ता; लेकिन धागा सारे फूलों को एक साथ जोड़े रखता है। तो हमारी यह सभी भावनात्मक अवस्थाएं, इमोशंस फूलों की भांति ही हैं हम कभी क्रोध में होते हैं, तो कभी उदास होते हैं। कभी आनंद के, खुशी के फूल होते हैं, तो कभी पीड़ा के, व्यथा से भरे फूल होते हैं। लेकिन यह सभी अवस्थाएं फूलों जैसी हैं, और हमारा पूरा जीवन फूलों की माला है हमारे जीवन को एक सूत्र मैं
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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