SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर सहमत हैं कि कोई भी पुरुष किसी स्त्री की कामवासना को संतुष्ट कर सकने के लिए पर्याप्त नहीं है। अगर स्त्रियों को पूरी स्वतंत्रता दे दी जाए, तो एक स्त्री को पूर्ण संतुष्ट करने के लिए पुरुषों के एक समूह की आवश्यकता होगी। एक पुरुष और एक स्त्री साथ - साथ नहीं रह सकते उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दे दी जाए तो। तब स्त्री यह मांग करेगी कि वह यही बात पुरुष के लिए मृत्यु के समान हो जाएगी। अगर अभी भी संतुष्ट नहीं हुई है, और - काम - ऊर्जा हमें जीवन प्रदान करती है। जितना अधिक हम काम – ऊर्जा का उपयोग करते हैं, मृत्यु उतने ही अधिक हमारे निकट आती जाती है। इसी कारण योगी काम - ऊर्जा को निष्कासित करने से इतने भयभीत रहते हैं, और इसीलिए वे काम – ऊर्जा को संचित करने लगते हैं। क्योंकि वे अपनी उम्र को लंबाना चाहते हैं, ताकि वे जिस साधना में लगे हुए हैं, स्वयं पर वे जो कार्य कर रहे हैं, वह उनका कार्य पूरा हो जाए। अपना कार्य पूरा • होने से पहले कहीं उनकी मृत्यु न हो जाए, वरना अगले जन्म में उसी कार्य को उन्हें फिर से प्रारंभ करना पड़ेगा। काम - ऊर्जा हमको जीवन प्रदान करती है। जिस क्षण काम ऊर्जा देह छोड़ने लगती है, व्यक्ति मृत्यु की ओर सरकने लगता है। ऐसे बहुत से छोटे छोटे कीट पतंगे हैं जो एक ही काम - क्रीड़ा में मर जाते हैं। कुछ ऐसे मकोड़े होते हैं जो एक ही संभोग में मर जाते हैं। वे जीवन में एक ही संभोग करते हैं। और इतना ही नहीं, तुम यह जानकर चकित होओगे कि जब वे संभोग कर रहे होते हैं, तो जो स्त्री मकड़ी होती है वह उन्हें खाना शुरू कर देती है। वस्तुतः वह उन्हें खा जाती है। का करोगे भी क्या? क्योंकि मरे हु 'मकोड़े सारे कामवासना के संबंधों में मृत्यु का भय निहित होता है, फिर पुरुष धीरे- धीरे स्त्री से भयभीत होने लगता है। स्त्री को कामगत प्रेम से ऊर्जा मिलती है, और पुरुष की ऊर्जा उसमें खोती है। क्योंकि स्त्री का हारा केंद्र क्रियाशील होता है। स्त्री उष्ण – ऊर्जा को शीतल – ऊर्जा में परिवर्तित कर लेती है। चूंकि स्त्री ग्रहणशील ग्राहक होती है, स्त्री एक निष्किय द्वार और एक गहन आमंत्रण है, इसलिए स्त्री ऊर्जा को आत्मसात कर लेती है, और पुरुष ऊर्जा को खो देता है। में वह यह जो हारा –केंद्र है या इसे चंद्र - केंद्र भी कह सकते हैं पुरुष में भी होता है, लेकिन पुरुष सक्रिय नहीं होता। यह केंद्र पुरुष में तभी सक्रिय हो सकता है, अगर वह इसे रूपांतरित करने के लिए, इसे सक्रिय करने के लिए वह प्रयास करे । ताओ का पूरा का पूरा विज्ञान और कुछ नहीं, बस यही है कि चंद्र-केंद्र को पूर्णतया क्रियाशील कैसे बनाना, पूर्णतया सक्रिय कैसे करना इसीलिए ताओ की पूरी की पूरी दृष्टि ग्रहणशील, स्त्रैण और निष्क्रिय है। योग का भी वही मार्ग है, लेकिन योग का आयाम भिन्न है। योग बाहर की सौर ऊर्जा को बाहर की सूर्य ऊर्जा को, शरीर के भीतर की सूर्य – ऊर्जा पर कार्य करना चाहता है, और सूर्य ऊर्जा से उसे चंद्र-केंद्र तक ले आना चाहता है। ताओ और तंत्र, चंद्र केंद्र पर कार्य करके उसे
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy