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________________ का जो सातत्य और वर्तुल है, वह टूट जाएगा। मनुष्य फल खाता है, फल सूर्य ऊर्जा को, पृथ्वी तत्व को, पानी को ग्रहण करता है। तो मनुष्य की भी बारी आएगी किसी न किसी के द्वारा खाए जाने की। मनुष्य को कौन खाता है? गुर्जिएफ कहा करता था कि चंद्रमा मनुष्य को खाता है। गुर्जिएफ बड़ा मौजी किस्म का आदमी था। उसकी भाषा वैज्ञानिक नहीं है, उसकी अभिव्यक्ति वैज्ञानिक नहीं है। लेकिन अगर कोई उनमें गहरे उतरे, तो वह उनमें हीरे खोज सकता है। अब पहला सूत्र: चंद्रे ताराब्यूहज्ञानम्। 'चंद्र पर संयम संपन्न करने से तारों -नक्षत्रों की समग्र व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है।' तो चंद्र-केंद्र हारा है, जो नाभि के ठीक दो इंच नीचे स्थित है। अगर हारा पर जोर से चोट की जाए, तो आदमी की मृत्यु हो जाती है। बाहर से देखने पर खून की एक बूंद भी न टपकेमी और आदमी मर जाएगा। और उसे किसी भी तरह की कोई पीड़ा, तकलीफ भी नहीं होगी। इसीलिए जापानी लोग हारा -किरी के दवारा आत्महत्या कर लेते हैं, और कोई वैसे त,हीं कर सकता है। वे चाकू को हारा केंद्र में ही घोप लेते हैं लेकिन वे जानते हैं कि हारा केंद्र कहां है, और ठीक किस जगह पर चाकू मारना है-और वे मर जाते हैं। शरीर का तादात्म्य आत्मा से टूट जाता है। चंद्र-केंद्र मृत्यु का केंद्र होता है। इसीलिए पुरुष स्त्रियों से भयभीत रहते हैं। बहुत से पुरुष मेरे पास आते हैं, और वे कहते हैं कि उन्हें स्त्रियों से भय लगता है। उन्हें स्त्री से कौन सा भय है? भय यही है कि स्त्री हारा है, चंद्र है और वह पुरुष को समाप्त कर देती है। इसीलिए पुरुष हमेशा से स्त्री को दबाने की, उसे अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश करते आए हैं, वरना स्त्री पुरुष को समाप्त कर देती है, उसे तहस-नहस कर देती है, उसे मिटा देती है। स्त्री पर हमेशा यही दबाव डाला जाता है कि वह किसी पुरुष के बंधन में रहे। इसे समझने की कोशिश करें। पूरी दुनिया में आखिर क्यों पुरुष हमेशा से स्त्रियों को जोर-जबर्दस्ती के द्वारा गुलाम बनाता आ रहा है? क्यों? जरूर कहीं कोई भय होगा, स्त्रियों के लिए पुरुष के मन में कहीं कोई गहरा भय होगा। कि अगर स्त्रियों को स्वतंत्रता दे दी जाए तो पुरुष का जीना संभव नहीं। और इसमें सचाई भी है। पुरुष को काम –क्रिया में एक समय में केवल एक ऑर्गाज्म का अनुभव होता है, स्त्री को एक काम-क्रिया में कई बार ऑर्गाज्म के अनुभव हो सकते हैं। पुरुष एक समय में केवल एक ही स्त्री के साथ काम -क्रीड़ा में उतर सकता है, स्त्री जितने चाहे उतने पुरुषों के साथ प्रेम कर सकती है। अगर स्त्री को पूर्ण स्वतंत्रता दे दी जाए, तो कोई एक पुरुष किसी भी एक स्त्री को पूरी तरह से संतुष्ट न कर पाएगा-कोई भी पुरुष। अब तो मनस्विद भी इस पर सहमत हैं। अभी वर्तमान की मास्टर्स एंड जानसन की ताजा खोजें और किन्से की रिपोर्ट एकदम सुनिश्चित तौर पर इस बात
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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