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________________ क्या अंधकार अपने आपमें वास्तविकता है या केवल प्रकाश की अनुपस्थिति मात्र है? अगर अंधकार का अपना कोई अस्तित्व होता, तब तुम दीया जलाओगे तो वह उसका विरोध करेगा। फिर तो वह दीए को बुझाने का प्रयास करेगा। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करेगा। लेकिन अंधकार कभी प्रकाश का विरोध नहीं करता। वह प्रकाश के खिलाफ कभी नहीं लड़ता । वह एक छाँट से दीए को भी बुझा नहीं सकता। विराट अंधकार और छोटा सा दीया, लेकिन फिर भी अंधकार कितना ही विराट हो, छोटे से दीए को हराया नहीं जा सकता। अंधकार का भले ही उस घर में सदियों से राज्य रहा हो, लेकिन अगर छोटा सा दीया ले आओ, तो भी अंधेरा नहीं कहेगा कि मैं सदियों सदियों से यहां रह रहा हूं तो मैं प्रकाश का विरोध करूंगा।' अंधकार तो चुपचाप तिरोहित हो जाता है। अंधकार की कोई विधायक सत्ता नहीं होती है, वह तो केवल प्रकाश की अनुपस्थिति मात्र है। इसलिए जब तुम प्रकाश लाते हो, तो वह मिट जाता है। जब प्रकाश को बुझा देते हो, तो वह मौजूद हो है। सच तो यह है अंधकार कभी आता-जाता नहीं है। अंधकार और कुछ भी नहीं बस प्रकाश की अनुपस्थिति है। प्रकाश होता है, तो अंधकार नहीं होता, प्रकाश की अनुपस्थिति में वह उपस्थित हो जाता है। अंधकार एक अनुपस्थिति है। ध्यान अंतर का प्रकाश है। ध्यान के विपरीत कुछ भी नहीं है, केवल अनुपस्थिति है। पूरा जीवन ध्यान की अनुपस्थिति है। जैसे तुम पद-प्रतिष्ठा, अहंकार, महत्वाकांक्षा, लोभ-लालच का सांसारिक जीवन जीते हो। और वही तो राजनीति है। राजनीति एक बड़ा विराट शब्द है। उसमें केवल तथाकथित राजनीतिक ही सम्मिलित नहीं हैं, उसके अंतर्गत सांसारिक लोग भी सम्मिलित हैं। उसमें वे सभी लोग आते हैं, जो भी महत्वाकांक्षी है, वह राजनीतिक है ही, और जो भी व्यक्ति कहीं पहुंचने के लिए कुछ पाने के लिए संघर्ष करता है, वह राजनीतिक है ही। जहां कहीं भी प्रतियोगिता है वहां राजनीति है। तीस विद्यार्थी एक ही कक्षा में पढ़ते हैं और वे स्वयं को सहपाठी कहते हैं - वे एक दूसरे के शत्रु होते हैं। क्योंकि वे सभी एक-दूसरे के प्रतियोगी होते हैं, साथी – संगी नहीं। वे सभी एक-दूसरे से आगे निकल जाने की कोशिश कर रहे होते हैं। वे सभी स्वर्ण पदक पाने की कोशिश कर रहे होते हैं वे सभी प्रथम आने की कोशिश कर रहे होते हैं। अगर महत्वाकांक्षा मौजूद है, तो वे राजनीतिज्ञ हैं। जहां कहीं भी प्रतियोगिता है, संघर्ष है, वहा राजनीति है। तथाकथित सामान्य जीवन भी राजनीति से पूर्ण होता है। ध्यान है प्रकाश की भांति जब ध्यान का आविर्भाव होता है, तो राजनीति मिट जाती है। इसलिए तुम एक साथ ध्यानी और राजनीतिक नहीं हो सकते, यह असंभव है, तुम असंभव की मांग कर रहे हो। ध्यान का कोई ओर-छोर नहीं है; ध्यान सभी तरह के संघर्ष, दवदव, महत्वाकांक्षाओं का अभाव है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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