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________________ करने वाले और दमित मौजूद रहेंगे। उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा; परिस्थिति वैसी की वैसी ही रहेगी। समाज में मालिक होंगे और ग्लाम होंगे। अगर संभावना है तो केवल एक ही क्रांति की, और वह है हृदय की क्रांति। जब किसी भिखारी को देखो, तो उसके प्रति संवेदनशील रहो। अपने और भिखारी के बीच किसी शॉक एब्जाहर्वर को मत आने देना। हमेशा संवेदनशील रहो। ऐसा थोड़ा कठिन भी है, क्योंकि हो सकता है भिखारी को देखकर तम रोने लगो। ऐसा कठिन है, क्योंकि यह तुम्हारे लिए बहुत ही असुविधाजनक होगा। जो कुछ उसके साथ शेयर कर सकते हो, बांट सकते हो बांटना, और इस बात की फिक्र मत करना कि वह भिखारी ही बना रहेगा या नहीं जो कुछ भी तुम उसके लिए कर सकते हो, वह जरूर करना। तो यह करना ही तुम्हें रूपांतरित कर देगा। यह प्रेम का भाव तुम्हें नया कर जाएगा, जो कि हृदय के अधिक निकट और मन से दूर होगा। और आत्म-रूपांतरण का एकमात्र यही तरीका है। अगर इस तरह से व्यक्ति रूपांतरित होते चले जाएं, तो संभव है एक दिन ऐसा समाज भी आ जाएगा, जहां लोग इतने संवेदनशील होंगे कि वे शोषण नहीं कर सकेंगे, जहां लोग इतने सजग होंगे कि वे किसी दूसरे के ऊपर अत्याचार कर ही न सकेंगे, लोग इतने प्रेमपूर्ण होंगे कि गरीबी और गुलामी के बारे में सोचना भी असंभव हो जाएगा। हृदय की सुनना, और जैसा हृदय कहे वैसा ही करना, किन्हीं सिदधांतों और व्यर्थ के विचारों के जाल में मत उलझ जाना। प्रश्न करने वाले ने आगे पूछा है: आपने कहा है कि हमें विपरीत धुवों को समाहित करना है; हमें धर्म और विज्ञान संगति और असंगति, पूरब और पश्चिम, टेक्मॉलाजी और अध्यात्म दोनों को चुनना है। तो क्या मैं राजनीति और ध्यान दोनों को चुन सकता हूं? क्या मैं एक साथ स्वयं को और संसार को बदलने की बात चुन सकता ह? क्या मैं एक साथ क्रांतिकारी और संन्यासी हो सकता हं? हां, मैंने बार-बार कहा है कि विपरित ध्रुवों को स्वीकार करना ही पड़ता है। लेकिन ध्यान कोई ध्रुवता नहीं है। ध्यान है विपरित ध्रुवों को स्वीकार करना, और स्वीकार करने से व्यक्ति दोनों के पार हो जाता है। इसलिए ध्यान के विपरित कुछ है ही नहीं। इसे समझने की कोशिश करना। तुम एक अंधेरे कमरे में बैठे हो। क्या अंधेरा प्रकाश के विपरीत होता है, या केवल प्रकाश की अनुपस्थिति होता है? अगर अंधकार प्रकाश के विपरीत हो, तब तो अंधकार का अपना अस्तित्व होता?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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