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________________ एक बार एक झेन गुरु ने अपने शिष्यों को प्रश्नों के लिए आमंत्रित किया। एक शिष्य ने पूछा, 'जो लोग अपनी शिक्षा के लिए परिश्रम करते हैं, वे भविष्य में मिलने वाले कौन-कौन से पुरस्कारों की आशा कर सकते हैं? गुरु ने उत्तर दिया, 'वही प्रश्न पूछो जो स्वयं के केंद्र के निकट हो।' दूसरा शिष्य जानना चाहता था, 'मैं अपनी पहले की मूढ़ताओं को कैसे रोकु जो मुझे दोषी सिद्ध करती हैं? गुरु ने फिर वही बात दोहरा दी, 'वही प्रश्न पूछो जो स्वयं के केंद्र के निकट हो।' तीसरे शिष्य ने पूछा, 'गरु जी हम नहीं समझते कि स्व-केंद्र के निकट का प्रश्न पूछने का क्या मतलब होता है? 'दर देखने के पहले अपने निकट देखो। वर्तमान क्षण के प्रति सचेत रहो, क्योंकि वह अपने में भविष्य और अतीत के उत्तर लिए रहता है। अभी तुम्हारे मन में कौन सा विचार आया? अभी तुम मेरे सामने विश्रांत अवस्था में बैठे हो या तुम्हारा शरीर तनावपूर्ण ही है? अभी तुम्हारा पूरा ध्यान मेरी ओर है या थोड़ा बहुत ही है? इस तरह के प्रश्न पूछकर स्व-केंद्र के निकट आओ। निकट के प्रश्न ही दूर के उत्तरों तक ले जाते हैं।' यही है जीवन के प्रति योग का दृष्टिकोण। योग कोई तत्वमीमांसा नहीं है। वह दूर के, सुदूर के प्रश्नों की फिकर नहीं करता-पिछला जन्म, आने वाला जन्म, स्वर्ग -नर्क, परमात्मा और इस तरह की बातों की योग फिकर नहीं करता। योग का संबंध स्व-केंद्र के निकट के प्रश्नों से है। जितने निकट का प्रश्न होता है, उतनी ही अधिक संभावना उसे सुलझाने की होती है। अगर व्यक्ति अपने निकट से निकट का प्रश्न पूछ सके, तो पूरी संभावना है कि पूछने मात्र से ही वह सुलझ जाए। और जब तुम निकट का प्रश्न सुलझा लेते हो, तो पहला कदम उठ गया। तब तीर्थ –यात्रा का प्रारंभ हो जाता है। तब धीरे-धीरे उन प्रश्नों को सुलझाना आसान होता जाता है, जो दूर के होते हैं –लेकिन योग की पूरी प्रक्रिया तुम्हें अपने केंद्र के निकट ले आने की है। इसलिए अगर तुम पतंजलि से परमात्मा के संबंध में पूछो, तो वे उत्तर न देंगे। वस्तुत: तो वे तुम्हें मूढ़ ही समझेंगे। योग सारे तत्वमीमांसकों, सिद्धांतवादियो को मढ़ मानता है; ये लोग उन समस्याओं पर अपना समय नष्ट कर रहे हैं जिन्हें सुलझाया नही जा सकता, क्योंकि वे बहुत दूर की है, व्यक्ति की पहुंच के बाहर की हैं। अच्छा हो वहीं से आरंभ करो जहां कि तुम हो। तुम वहीं से आरंभ कर सकते हो जहां तुम हो। यात्रा वहीं से आरंभ हो सकती है जहां तुम हो। दूर के बौद्धिक, तात्विक प्रश्न मत पूछो, भीतर के प्रश्न पूछो।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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