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________________ अपने नुकसान की क्षतिपूर्ति करने के खयाल से उस ग्रामीण ने जल्दी से कपड़े उतारे और वह कुएं में उतर गया। जब वह कुएं से बाहर आया, तो उसके हाथ खाली थे। बाहर आकर उसने देखा कि उसके कपड़े भी गायब हैं। फिर उसने एक बड़ी सी लकड़ी उठाई और उसे तेजी से इधर -उधर घुमाने लगा। बहुत से लोग उसे देखने के लिए इकट्ठे हो गए थे। 'मेरे पास जो कुछ भी था वह सब उन चोरों ने चुरा लिया है। अब मुझे डर है कि कहीं वे मुझे भी न चुरा लें। अगर पतंजलि वापस लौटकर आएं तो ऐसी ही स्थिति में अपने को पाएंगे पतंजलि पर हुई व्याख्याओं ने पतंजलि को तो बहुत पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने सब कुछ चुरा लिया है, उन्होंने पतंजलि के तन के कपड़े भी नहीं छोड़े हैं। और ऐसा उन्होंने इतनी कुशलता से किया है कि किसी को कभी कोई संदेह भी न उठेगा। वस्तुत: तो, पांच हजार वर्ष के बाद जो लोग पतंजलि के ऊपर की गई व्याख्याओं और टीकाओं को पढ़ते रहे हैं, उन्हें जो कुछ मैं कह रहा हूं यह सब बड़ा अजीब लगेगा। मेरी बातें उन्हें बहुत अजीब लगेगी। वे इसी भाषा में सोचेंगे कि मैंने उन टीकाकारों और व्याख्याकारों की बातों को नए अर्थ दे दिए हैं। मैं कोई नए अर्थ नहीं दे रहा हूं, लेकिन पतंजलि को इतने लंबे समय से गलत ढंग से व्याख्यायित किया जाता रहा है कि अगर मैं पतंजलि के अभिप्राय को ठीक-ठीक बताऊंगा, तो मेरे कथन बहुत ही अजीब और अनोखे लगेंगे, लगभग अविश्वसनीय ही लगेंगे। अंतिम सूत्र 'सूर्य' के विषय में था। सौर -मंडल के अंतर्गत सूर्य के विषय में सोचना स्वाभाविक लगता है; इसी तरह से तमाम व्याख्याकारों ने उसकी व्याख्या की है। लेकिन ऐसा नहीं है। सूर्य का संबंध व्यक्ति के काम -तंत्र से है -जो व्यक्ति के भीतर जीवन-शक्ति का, ऊर्जा का व ऊष्मा का स्रोत है। अंग्रेजी में एक विशेष स्नाय -तंत्र को सोलर प्लेक्सेज कहते हैं –लेकिन लोग सोचते हैं कि सोलर प्लेक्सेज नाभि के नीचे होता है। यह बात गलत है। सूर्य –ऊर्जा काम–केंद्र में अस्तित्व रखती है, नाभि में नहीं। क्योंकि वहीं से तो सारे शरीर को ताप व ऊष्मा मिलती है। लेकिन यह व्याख्या बहत ही अस्वाभाविक और अकल्पनीय लगेगी, इसलिए मैं उसकी और अधिक व्याख्या करना चाहूंगा। और फिर दूसरे कई हैं चंद्रमा है, तारे हैं, ध्रुव तारा है। पतंजलि जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उससे तो ऐसो लगता है जैसे कि पतंजलि सौर -व्यवस्था के विषय में ज्योतिष की भाषा में या खगोल - विज्ञान की भाषा में बात कर रहे हों। लेकिन पतंजलि व्यक्ति के आंतरिक ब्रह्मांड के विषय में बात कर रहे हैं। जैसे बाहर ब्रह्मांड है, ठीक ऐसे ही मनुष्य के भीतर भी एक ब्रह्मांड है। जो कुछ भी बाहर है, वैसा ही मनुष्य के भीतर भी है। मनुष्य लगभग एक लघु ब्रह्मांड ही है। मनुष्य को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है : सूर्य प्रकृति और चंद्र प्रकृति। सूर्य प्रकृति के लोग आक्रामक होते हैं, हिंसात्मक होते हैं, बहिर्गामी होते हैं, बहिर्मुखी होते हैं। चंद्र प्रकृति के लोग अंतर्मुखी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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