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________________ तीसरी बात: 'आत्मिक शक्तियों के गलत उपयोग के लिए किए जाने वाले मुख्य प्रतिकार के विषय में कृपया कुछ समझाएं। ' आत्मिक शक्तियों के गलत उपयोग का एकमात्र प्रतिकार प्रेम है; अन्यथा शक्ति कोई सी भी हो, विकृत ही करती है। सभी तरह की शक्तिया विकृत करती हैं। फिर वह शक्ति चाहे धन की हो, या पद -प्रतिष्ठा, आदर, मान सम्मान की हो या सता की राजनीति की शक्ति हो, या मानसिक शक्ति हो - उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। जब भी व्यक्ति शक्तिशाली होता है, उसके हाथ में किसी भी प्रकार की शक्ति होती है तो अगर प्रतिकार के रूप में उसके पास प्रेम नहीं है, तो उसकी शक्ति दूसरों के लिए संकट बनने ही वाली है, अभिशाप बनने वाली है; क्योंकि शक्ति की ताकत, व्यक्ति को अंधा बना देती है प्रेम दृष्टि को खोलता है, प्रेम दृष्टि को साफ कर देता है. प्रेमपूर्ण व्यक्ति के ज्ञान चक्षु एकदम साफ हो जाते हैं। शक्ति व्यक्ति को अंधा बना देती है। 我 तुम से एक कथा कहना चाहूंगा: एक धनी आदमी था, लेकिन साथ में वह कंजूस भी था। वह कभी भी किसी जरूरत मंद की मदद नहीं करता था। उसका जो रब्बी था उसने उससे कहा कि वह एक निर्धन परिवार की मदद करे, उन्हें भोजन और दवाइयों इत्यादि की जरूरत है। लेकिन उस कंजूस धनवान ने मदद करने से इनकार कर दिया। रब्बी ने उसके हाथ में एक दर्पण दिया और उससे कहा, 'इस दर्पण में देखो। तुम्हें इस दर्पण में क्या दिखायी पड़ रहा है?' वह कंजूस बोला, मुझे इसमें अपना चेहरा ही दिखायी दे रहा है, और तो कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा है।' रब्बी ने फिर कहा, 'अब जरा इस खिड़की में से देखो तुम्हें वहां क्या दिखायी पड़ रहा है? वह कंजूस बोला, 'मुझे कुछ पुरुष और कुछ स्त्रियां दिखायी दे रही हैं प्रेम में डूबा हुआ एक जोड़ा भी दिखायी पड़ रहा है और कुछ बच्चे खेलते हुए दिखायी दे रहे हैं। लेकिन आप मुझसे यह सब क्यों पूछ रहे हैं? रब्बी ने कहा, तुमने अपने ही प्रश्न का उत्तर दिया है, खिड़की के पार तुमने जीवन को देखा, दर्पण में तुम स्वयं को देखा। खिड़की की तरह दर्पण भी शीशे का बना होता है, लेकिन उसके पीछे चांदी का लेप चढाया होता है जैसे यह चांदी की चमक जीवन को देखने नहीं देती है, दृष्टि को ढांक लेती है, केवल अपने स्वार्थ को ही देख पाते हो, ऐसा ही कुछ तुम्हारे चांदी के सिक्कों ने, और तुम्हारे और तुम
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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