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________________ मैंने सुना है कि एक दिन ऐसा हुआ: एक शराबी जन्म - मृत्यु के रजिस्ट्रेशन आफिस में जा घुसा - 'सज्जनों,' वह हिचकी लेते हुए बोला, 'मैं जुड़वां बच्चों का नाम रजिस्टर करना चाहता हूं।' रजिस्ट्रार ने पूछा, 'आप सज्जनों शब्द का उपयोग क्यों कर रहे हैं? क्या आप नहीं देख रहे हैं कि मैं यहां बिलकुल अकेला हूं?' नए बने पिता ने डगमगाते हए हांफते –हांफते कहा, 'आप अकेले हो? तब तो शायद यही उचित होगा कि मैं फिर से अस्पताल जाऊं और वहां जाकर ठीक से देखू।' शायद वे जुड़वां न हों, वहां एक ही बच्चा हो। यह हमारी अपनी ही मूर्छा है, जो जीवन के प्रति विकृत दृष्टि दे देती है। और फिर तुमको हमेशा मेरी बातों में विरोधाभास ही दिखाई पड़ता रहेगा। ही, मेरी बातों में विरोधाभास है, लेकिन वह विरोधाभास केवल ऊपर-ऊपर से ही है। गहरे में मेरी बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अब हम विशेष रूप से विरोधाभास की बात करें: 'पतंजलि कहते हैं कि व्यक्ति अज्ञान के कारण अज्ञान एकत्रित करता चला जाता है, कर्मों को संचित करता चला जाता है। और हम आप से सुनते आए हैं कि जब तक व्यक्ति एक सुनिश्चित क्रिस्टलाइजेशन को नहीं उपलब्ध हो जाता है, तब तक वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं होता है -इसके विपरीत, कर्ता तो परमात्मा होता है, वही उत्तरदायी भी होता है।' ये दोनों मार्ग विरोधाभासी मालूम होते हैं। एक तो यह कि हम सब कुछ ही परमात्मा पर छोड़ दें - लेकिन समग्ररूप से, पूर्णरूप से। तब हम किसी बात के लिए जिम्मेवार नहीं होते। लेकिन स्मरण रहे, समर्पण पूरी तरह से होना चाहिए; समग्र रूप से समर्पण भाव होना चाहिए। तब अगर कुछ अच्छा भी होता है, तो परमात्मा ही उसे करने वाला होता है; अगर कुछ बुरा होता है, तब तो निस्संदेह परमात्मा ने ही किया होता है। तो टोटैलिटी, समग्रता का हमेशा ध्यान रहे। तो एक दिन वही समग्रता तुमको रूपांतरित कर देगी। तो होशियारी मत दिखाना, चालाकी मत चलना, क्योंकि इस बात की हमेशा संभावना रहती है कि जो कुछ भी हमको अच्छा नहीं लगता है, उसके लिए हम परमात्मा को उत्तरदायी ठहरा देते हैं। जिस बात से भी हमको अपराध भाव पकड़ता है, उसका उत्तरदायित्व हम परमात्मा पर डाल देते हैं। और जिन बातों से हमारे अहंकार की वृद्धि होती है, हमारे अहंकार को बढ़ावा मिलता है, तब हम कहते हैं, यह मैंने किया है। हो सकता है प्रकट रूप से ऐसा न भी कहें, लेकिन अपने अंतर्तम में हम यही कहते हैं। अगर कोई अच्छी कविता लिखेंगे, तो हम कहेंगे, मैं हू इस कविता को लिखने वाला कवि। अगर कोई सुंदर चित्र बनाएंगे, तो हम कहेंगे, मैं हं चित्रकार, मैंने इसे बनाया है। और जब नोबल पुरस्कार मिल
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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