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________________ लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि जीवन अरस्तुगत तर्क में विश्वास नहीं करता है, या जीवन अरस्तु के तर्क से नहीं चला करता है, जीवन अरस्तू के तर्क से कहीं अधिक विशाल है, कहीं अधिक विराट है। पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं। क्या तुमने ताओ का प्रतीक-यिन और यांग-देखा है ? दो विपरीतताए एक-दूसरे में घुल-मिल रही होती हैं, एक-दूसरे में विलीन हो रही होती हैं दिन मिल रहा है रात से, रात मिल रही है दिन में, जीवन मिल रहा है मृत्यु में, मुत्यु मिल रही है जीवन में। और यही सत्य भी है। जीवन और मृत्यु का कोई अलग - अलग अस्तित्व नहीं है, वे एक -दूसरे से पृथक नहीं हैं। उनके बीच कहीं कोई अंतराल नहीं है, कोई गैप या खाली स्थान नही है। जीवन ही मृत्यु बन जाता है, और मृत्यु ही फिर से जीवन बन जाती है। कभी समुद्र के पास चले जाना और वहां पर किसी लहर को उठते हुए देखना। जब लहर उठती है तो एक खाली गड्डा बन जाता है, लहर ऊपर-नीचे चलती है। तो उस लहर के ऊपर -नीचे उठने के बीच खाली गड्डा बनता है। तो वह लहर और गड्डा अलग - अलग नहीं हैं। जब कोई विराट पर्वत होता है, तो उसके साथ -साथ ही उतनी ही विशाल घाटी भी होती है। घाटी और पर्वत अलग-अलग नहीं हैं। घाटी और कुछ नहीं है, केवल कहीं पर्वत ऊपर हो गया है और कहीं नहीं। और ऐसे ही पर्वत और कुछ नहीं है, घाटी कहीं नीचे रह गई है, ऊपर चोटी की ओर नहीं बढ़ पायी है। पुरुष और स्त्री, या ऐसी ही दूसरी अन्य विपरीत बातें केवल देखने में ही बस, परस्पर विपरीत दिखायी पड़ती हैं। जब एक बार तुम इस सत्य को देख लोगे, जान लोगे तो फिर तुम हमेशा-हमेशा के लिए यह जान लोगे कि मुझे विरोधाभासी ढंग से बात कहनी पड़ती है तो केवल इसीलिए क्योंकि मुझे संपूर्ण अस्तित्व की, समग्र की बात कहनी है। और जब मैं कुछ भी कहता हूं? तो उस समय केवल एक हिस्से की ही बात कही जाती है, दूसरा हिस्सा तो छूट ही जाता है तो मुझे उस छूटे हुए हिस्से की भी बात तुमसे कहनी होती है। जब मैं उस दूसरे हिस्से की बात करता हूं, तो तुम कह उठते हो, 'ठहरें, आप तो विरोधाभासी बातें कर रहे हैं।' चूंकि भाषा तो अभी भी अरस्तु के समय की ही चली आ रही है, और मुझे नहीं लगता है कि कभी गैर - अरस्तुगत भाषा की भी कोई संभावना है। ऐसा होना बहुत कठिन है, क्योंकि हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए चीजों को दो भागों में बाटना ही पड़ता है –काले और सफेद में स्पष्ट रूप से बांटना ही पड़ता है। काला और सफेद हमें एकदम अलग - अलग दिखायी पड़ते हैं, लेकिन जीवन तो इंद्रधनुष की भांति है -सभी रंगों का जोड़, सभी रंगों से भरपूर। संभव है किसी का एक पक्ष मासेद तो, और दूसरा पक्ष काला हो, लेकिन बीच में और भी कई सोपान हैं, जो कि परस्पर जुड़े हुए है। जीवन सभी रंगों का जोड़ है, जीवन इंद्रधनुषी है। अगर हम बीच के सोपानों को सीस देंगे, तो चीजें हमें परस्पर विरोधी दिखाई पड़ने लगेंगी। यह हमारी दृष्टि ही है जो कि अभी तक स्वच्छ नहीं हुई है, साफ नहीं हुई है। अभी धुंधली ही है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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