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________________ जोर्डन नदी दक्षिण की ओर एक दूसरे सागर में जाकर मिलती है। उस समुद्र के किनारे किसी प्रकार का कोई जीवन नहीं है, न तो वहा पर पक्षियों के गीत हैं, न ही बच्चों की हंसी वहां सुनायी पड़ती है। उस समुद्र की हवाएं मृत और बोझिल सी हैं -और न तो कोई मनुष्य ही, और न कोई पशु, और न ही कोई पक्षी इस समुद्र का पानी पीता है। यह सागर मृत है। फिर आखिरकार वह ऐसी कौन सी चीज है जो पैलेस्टाइन के इन दोनों सागरों के बीच इतना बड़ा अंतर ले आती है -एक तो समुद्र इतना अदभुत रूप से जीवंत है, और दूसरा समुद्र एकदम मृत है? अंतर यह है कि गेलाइली का सागर ग्रहण तो करता है किंतु जोर्डन नदी के पानी को अपने में रोककर, ठहराकर नहीं रखता। उसमें पानी प्रवाहमान, बहता हुआ रहता है। अगर नया पानी आता है, तो पुराना बाहर भी जाता है। जितना आनंद से वह देता है, उसके बदले में वह उससे अधिक ग्रहण करता है। गेलाइली का सागर जीवंत सागर है। दूसरा जो सागर है वह नदी की प्रत्येक बूंद को अपने में ही रोककर रखता है और बदले में कुछ नहीं देता है। चूंकि गैलाइली का सागर निरंतर प्रवाहमान है और दूसरी नदियों को पानी देता है, इसलिए जीवंत है। दूसरा सागर कुछ देता नहीं है, इसलिए उसमें जीवंतता भी नहीं है। उसे बिलकुल ठीक ही नाम दिया गया है –मरा हुआ मृतसागर, डेड –सी। और ठीक यही बात मनुष्य के जीवन पर लागू होती है। हम गैलाइली का सागर भी बन सकते हैं, या फिर मत सागर, डेड सी भी बन सकते है। अगर गैलाइली का सागर बनते हैं, तो एक न एक दिन जीसस - चेतना को अपनी ओर खींच ही लेंगे। सदगुरु की उपस्थिति फिर हमारे आसपास ही घटित होने लगेगी। फिर वह अपने शिष्यों के साथ हमारे आसपास ही होंगे, फिर से हम एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाएंगे। हमें फिर से परमात्मा का दिव्य-स्पर्श मिलने लगेगा। या फिर हम मृत सागर भी बन सकते हैं। तब हम चारों ओर से लेते तो चले जाएंगे लेकिन वापस देंगे कुछ भी नहीं तब बस एकत्रित ही करते जाएंगे और देंगे कुछ भी नहीं। वह सागर मृत कैसे हो गया? कंजूस आदमी मृत ही होता है; वह प्रतिदिन ही मरा -मरा सा ही जीता है। बांटो, जो कुछ भी है उसे बांटों, और तब फिर हम अधिक ग्रहण कर सकने के योग्य हो जाते हैं। यही है मैत्री भाव का अर्थ। और पतंजलि कहते हैं कि अपना संयम करुणा, प्रेम और मैत्री भाव पर ले आओ, और तब सब अपने से विकसित हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि हम मैत्री –पूर्ण हो जाएंगे : बल्कि तब हम मैत्री भाव हो जाएंगे। तब ऐसा नहीं कि हम प्रेम करेंगे हम प्रेम ही हो जाएंगे, प्रेम हमारे होने का ढंग हो जाएगा। तीसरा सूत्र, 'हाथी के बल पर संयम निष्पादित करने से हाथी की सी शक्ति प्राप्त होती है।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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