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________________ सोचा ही न जाए उस पर ध्यान न दिया जाए, उस पर ध्यान केंद्रित न किया जाए यह तो नितांत मूढ़ता होगी। मृत्यु को गहराई से समझा न जाए, यह तो सबसे बड़ी मूढ़ता होगी। मृत्यु तो होगी ही। लेकिन अगर मृत्यु को जान लिया जाए तो फिर जीवन में बहुत सी संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। पतंजलि कहते हैं कि यहां तक कि किस दिन, किस समय, किस मिनट, किस क्षण मृत्यु घटित होने वाली है, पहले से जाना जा सकता है। अगर पहले से ठीक-ठीक मालूम हो कि मृत्यु कब घटित होने वाली है, तो हम तैयार हो सकते हैं। तब हम मृत्यु को घर आए अतिथि की तरह स्वीकार कर सकते हैं, उसका गुणगान कर सकते हैं। क्योंकि मृत्यु कोई शत्रु नहीं है। सच तो यह है मृत्यु परमात्मा के द्वारा दिया हुआ उपहार है। मृत्यु से होकर गुजरना एक महान अवसर है। अगर हम सजग होकर, होशपूर्वक और जागरूक होकर मृत्यु में प्रवेश कर सकें, मृत्यु हमारे लिए एक ऐसा द्वार बन सकती है, कि फिर हमारा कभी जन्म नहीं होगा और जब जन्म नहीं होगा, तो फिर कहीं कोई मृत्य भी नहीं बचती है। अगर इस अवसर को चूक गए, तो फिर से जन्म होगा ही। अगर चूकते ही गए, चूकते ही गए तो बार-बार तब तक जन्म होता ही रहेगा, जब तक कि हम मृत्यु का पाठ न सीख लेंगे। इसे ऐसे समझें. पूरा का पूरा जीवन मृत्यु को सीखने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, जीवन मृत्यु की ही तैयारी है। इसीलिए तो मृत्यु अंत में आती है। मृत्य जीवन का ही शिखर है। खासतौर से पश्चिम के मनस्विद आज इस बारे में जागरूक हो रहे हैं कि गहन प्रेम के क्षणों में परम आनंद उपलब्ध किया जा सकता है। प्रेम के क्षणों में आनंद का चरम रूप उपलब्ध हो सकता है जो बहुत ही तृप्तिदायी, उल्लास से आपूर्ति, आनंद में डुबा देने वाला होता है। उसके बाद व्यक्ति परिशुद्ध हो जाता है। उसके बाद व्यक्ति ताजा, युवा और प्राणवान अनुभव करता है-सारी धूल – धवांस ऐसे चली जाती है जैसे कि किसी ऊर्जा से स्नान कर लिया हो। लेकिन पश्चिम के मनस्विदों को अभी भी इस बात का पता नहीं चला है कि काम-पूर्ति एक बहुत ही छोटी मृत्यु के समान है। और जो व्यक्ति गहन काम के आनंद में होता है, वह स्वयं को प्रेम में मरने देता है। वह एक छोटी मृत्यु है, लेकिन फिर भी मृत्यु की तुलना में कुछ भी नहीं है। मृत्यु तो सबसे बड़ा आनंद है, सबसे बड़ी मृत्यु है। जब व्यक्ति मरने वाला होता है, तो मृत्यु की प्रगाढ़ता इतनी तीव्र होती है कि अधिकांश लोग मृत्यु के समय बेहोश हो जाते हैं र मूर्च्छित हो जाते हैं। ऐसे लोग मृत्यु का सामना नहीं कर पाते हैं। जिस घड़ी मृत्यू आती है, आदमी इतना भयभीत हो जाता है, इतनी चिंता और पीड़ा से भर जाता है कि उससे बचने के लिए बेहोश हो जाता है। लगभग निन्यानबे प्रतिशत लोग मूर्छा में, बेहोशी में ही मरते हैं। और इस तरह से वे एक सुंदर अवसर को अपने हाथों खो देते हैं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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