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________________ अगर तुम मेरे निकट आते हो, और मेरे सान्निध्य में एक क्षण को भी मेरी अंतर्वीणा के साथ तुम्हारे अंतर-स्वर मिल जाते हैं, तो तुम्हें मृत्यु की झलक मिल जाएगी। और जब बुद्ध कहते हैं तो बिलकुल ठीक कहते हैं, 'अगर तुम मृत्यु को देख सको तो मृत्यु तुम्हें न देख सकेगी क्योंकि जिस क्षण हम मृत्यु को जान लेते हैं, हम मृत्यु का अतिक्रमण कर जाते हैं। तब फिर कहीं कोई मृत्यु नहीं रह जाती है। पहला सूत्र : 'सक्रिय व निष्क्रिय या लक्षणात्मक व विलक्षणात्मक-इन दो प्रकार के कर्मों पर संयम पा लेने के बाद, मृत्यु की ठीक-ठीक घड़ी की भविष्य सूचना पायी जा सकती है। बहुत सी बातें समझ लेने जैसी हैं। पहली तो बात कि मृत्यु की ठीक-ठीक घड़ी जानने की चिंता ही क्यों करनी? उससे मदद क्या मिलने वाली है? उसमें सार क्या है? अगर हम पश्चिमी मनस्विदों से पूछे, तो वे इस ढंग के चित्त को अस्वाभाविक मानसिक विकार ही कहेंगे। मृत्यु के बारे में इतना विचार ही क्यों करना? मृत्यु से तो जितना हो सके बचो। और अपने मन में यह धारणा बनाए रहो कि मेरी मृत्यु कभी नहीं होगी-कम से कम मुझे मृत्यु घटित नहीं होगी। मृत्यु हमेशा दूसरों की होती है। हम लोगों को मरते हुए देखते हैं, हमने स्वयं को कभी मरते हए नहीं देखा है। तो फिर कैसा भय? क्यों भयभीत होना? हो सकता है हम अपवाद हों। लेकिन ध्यान रहे, कोई भी अपवाद होता नहीं है, और मृत्यु तो हमारे जन्म के साथ ही घटित हो गयी होती है, इसलिए हम मृत्य् से बच नहीं सकते हैं। फिर जन्म तो हमारे हाथ के बाहर की बात है। हम जन्म के लिए कुछ नहीं कर सकते, जन्म तो हो ही चुका है। जन्म तो अब अतीत की बात हो गयी, जन्म तो हो ही चुका है। अब उसे अघटित नहीं किया जा सकता है। मृत्यु की घटना अभी होने को है, अत: उसके लिए कुछ करना संभव है। पूरब के सभी धर्म, मृत्यु के दर्शन पर आधारित हैं, क्योंकि वही एक ऐसी संभावना है जिसे अभी होना है। अगर मृत्यु को पहले से ही जान लिया जाए, तो संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं, बहुत से द्वार खुल जाते हैं। तब मृत्यु हमारे हाथ में होती है। हम अपने ढंग से मर सकते हैं, फिर हम अपनी ही मृत्यु पर अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं। फिर यह हमारे हाथ में होता है कि हम ऐसा इंतजाम कर लें कि दोबारा जन्म न लेना पड़े-और जीवन का पूरा का पूरा अर्थ यही तो है। और इसमें कुछ मन की रुग्णता नहीं है। यह एकदम वैज्ञानिक है। जब प्रत्येक व्यक्ति को मरना ही है, तो मृत्यु के विषय में
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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