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________________ (क युवा सेल्समैन ने अपने मित्र से कहा, 'मुझे मेरी योग्यता पर से विश्वास उठने लगा है, आज का दिन बहुत ही खराब रहा और जरा भी बिक्री नहीं हुई। मुझे किसी ने भी घर में घुसने नहीं दिया, और मेरा चेहरा देखते ही लोगों ने जोर से दरवाजे बंद कर लिए, मुझे सीढ़ियों से धक्के मार-मारकर उतार दिया और मेरे सामान के जो नमूने थे, वे भी फेंक दिए और लोगों ने गुस्से से भरकर मुझे गालियां दी और मेरे साथ मार -पिटाई करने की भी कोशिश की।' उसके मित्र ने पूछा, 'तुम्हारा व्यवसाय क्या है?' 'बाइबिल,' उस युवा सेल्समैन ने कहा। धर्म एक गंदा शब्द क्यों बनकर रह गया है? जैसे ही धर्म, परमात्मा या ऐसे ही किसी शब्द का नाम लेते ही लोग घृणा से क्यों भर जाते हैं? क्यों सारी की सारी मनुष्य -जाति इसके प्रति इतनी उपेक्षापूर्ण हो गयी है? जरूर कहीं कुछ धर्म के साथ गलत हो गया है। इसे ठीक से समझ लेना, क्योंकि यह कोई साधारण बात नहीं है। धर्म जीवन की इतनी महत्वपूर्ण घटना है कि मनुष्य धर्म के बिना जीवित नहीं रह सकता है। और धर्म के बिना जीना, बिना किसी उद्देश्य के जीना है। धर्म के बिना जीवन, काव्यविहीन, सौदर्यविहीन जीवन है। धर्म के बिना जीवित रहना उबाऊ है-यही सार्च कह रहा है जब वह कहता है 'मैन इज ए यूज़लेस पैशन।' धर्म के बिना मनुष्य ऐसा हो जाता है। मनुष्य यूज़लेस पैशन नहीं है, लेकिन बिना धर्म के मनुष्य निश्चित ही ऐसा हो जाता है। अगर तुमसे ज्यादा ऊंचा कुछ न हो, तो फिर जीवन के सारे उद्देश्य तिरोहित हो जाते हैं। अगर मनुष्य को अपने से ऊपर पहुंचने की कोई ऊंची जगह न हो, ऊपर उठने को कुछ न हो, तो फिर मनुष्य के जीवन का कोई लक्ष्य, कोई उद्देश्य, कोई अर्थ नहीं रह जाता है। मनुष्य को अपने से ऊपर उठने के लिए, आकर्षित करने के लिए, उसे ऊपर की ओर खींचने के लिए उससे श्रेष्ठ कुछ होना चाहिए। कुछ इतना श्रेष्ठ होना चाहिए, ताकि वह नीचे अटककर न रह जाए। बिना धर्म के मनुष्य का जीवन एक ऐसा जीवन होगा जिसमें फल-फूल नहीं आते। हां, तब बिना धर्म के मनुष्य एक यूज़लेस पैशन ही हो सकता है। लेकिन धर्म के साथ होकर मनुष्य के जीवन में एक सौंदर्य और खिलावट आ जाती है, जैसे कि परमात्मा ने उसे भर दिया हो। तो इसे ठीक से समझ लेना कि धर्म शब्द इतना गंदा क्यों हो गया है। कुछ ऐसे लोग हैं जो निश्चित ही धर्म विरोधी हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो शायद पूरी तरह से धर्म विरोधी नहीं भी होंगे, लेकिन फिर भी वे धर्म के प्रति उपेक्षापूर्ण होते हैं। ऐसे लोग भी हैं जो धर्म के प्रति उपेक्षापूर्ण तो नहीं हैं, लेकिन जो केवल पाखंडी हैं, जो यह दिखावा करते हैं कि उनकी धर्म में
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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