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________________ सके, केवल तुम्हीं हो यह एक बड़ा उत्तरदायित्व है। इस बात से ही आदमी के नीचे की जमीन खिसकने लगती है, वह लड़खड़ाने लगता है, वह भयभीत हो उठता है, कंपने लगता है उसे बड़ी गहन पीड़ा होती है, और यह सत्य कि तुम अकेले हो, चिंता का कारण बन जाता है। 'परमात्मा मर चुका है,' नीत्शे ने यह बात केवल सौ वर्ष पहले ही कही, पतंजलि तो इसे पांच हजार वर्ष पहले से ही जानते थे वे सभी लोग जो सत्य को जानते हैं, उन्होंने इस बात को अनुभव किया है। कि परमात्मा मनुष्य की कल्पना है, वह आदमी की अपनी व्याख्या है, एक झूठ है स्वयं को सांत्वना देने के लिए। इससे आदमी थोड़ी राहत महसूस करता है। लोग अपने - अपने ढंग से व्याख्या किए चले जाते हैं। योग का पूरा का पूरा अभिप्राय ही यही है तुम सारी व्याख्याएं गिरा दो, अपनी दृष्टि को किसी भी तरह की कल्पित धारणा और विश्वास के बादलों से धुंधला न होने दो। चीजों को सीधे, स्पष्ट, भ्रम – रहित दृष्टि से देखो। अपनी ज्योति - शिखा को निर्धूम होकर जलने दो और जो कुछ भी विद्यमान है, मौजूद है उसे ही देखो। एक बगीचे में दो आदमी अपनी- अपनी पत्नियों की व्याख्या कर रहे थे 'मेरी पत्नी वीनस डिमिलो है।' 'तुम्हारा मतलब है कि उसका शरीर सुंदर है और वह लगभग नग्न ही रहती है?' दूसरे आदमी ने पूछा। 'नहीं, वह एंटीक है और थोड़ी पागल है।" 'मेरी पत्नी तो मुझे मोनालिसा की याद दिलाती है।' 'तुम्हारा अर्थ है कि वह फ्रेंच है और उसकी मुस्कान रहस्यमयी है?' 'नहीं, वह तो कैनवास की भांति सपाट है और उसे तो म्यूजियम में होना चाहिए । ' लौग अपने • अपने अर्थ, अपनी अपनी व्याख्याएं किए चले जाते हैं। — - हमेशा उनके पीछे छिपे अर्थ, उनके अभिप्राय को ही देखना, उनके शब्दों को नहीं। हमेशा उनके भीतर झांककर देखना, सुनना, उन बातों को मत सुनना जिन्हें वे कहते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वे क्या कहते हैं, महत्वपूर्ण यह है कि वे क्या हैं। तुम्हारा परमात्मा, तुम्हारी पूजा प्रार्थना महत्वपूर्ण नहीं हैं, तुम्हारे चर्च? तुम्हारे मंदिर महत्वपूर्ण नहीं हैं; केवल महत्वपूर्ण हो तो तुम ही। जब तुम प्रार्थना करते हो तो मैं तुम्हारी प्रार्थना को नहीं सुनता हूं मैं तुम्हें सुनता हूं। जब तुम पृथ्वी पर घुटनों को तुम्हें देखता हूं। यह सभी बातें भय से आती हैं झुकाते हो तो मैं तुम्हारे झुकने को नहीं देखता हूं, मैं और भय से निकला हुआ धर्म कोई धर्म नहीं हो
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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