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________________ होती-कोई संभावना ही न होती। सच तो यह है, तब सभी द्वार –दरवाजे बंद होते, फिर तो एक चट्टान चट्टान ही रहती है, उसकी संभावना का कोई आयाम ही नहीं बचता। वह वही होती जो कि वह हो सकती है, लेकिन मनुष्य पहले से वही नहीं होता है केवल एक संभावना होता है, एक अज्ञात संभावना होता है, वह अपने साथ एक अपरिसीम भविष्य लिए होता है, हजारों हजारों विकल्प उसके समक्ष होते हैं। यह सब तुम पर निर्भर करता है कि तुम कौन और करा होते हो। पूरा उत्तरदायित्व तुम्हारा है। जब कोई परमात्मा नहीं है, तो पूरा उत्तरदायित्व तुम्हारा ही है। इसीलिए तो भीड़ और कमजोर लोग परमात्मा में विश्वास किए चले जाते हैं। केवल साहसी आदमी ही अकेले खड़े रह सकते हैं। लेकिन यही बुनियादी आवश्यकता है -योग की यही बुनियादी मांग है कि तुम अकेले खड़े हो। और इस बात का स्पष्ट बोध हो जाना चाहिए कि जीवन का अर्थ मिला हुआ नहीं है, तुम्हें ही उसकी खोज करनी है। जीवन में अर्थ तुम्हें डालना है। तुम जीवन का अर्थ पा सकते हो, जीवन अर्थवान हो सकता है, लेकिन वह अर्थ तुम्हें अपने प्रयास से ही खोजना होगा। फिर जो कुछ भी करोगे, वह तुम्हें उदघाटित करता चला जाएगा। फिर प्रत्येक कृत्य तुम्हारे जीवन को, तुम्हारे अस्तित्व को और – और अर्थपूर्ण बना देगा। अगर इतनी तैयारी हो, तभी केवल योग संभव है। वरना चाहे प्रार्थनाएं करो और चाहे पृथ्वी पर घुटने टेककर झुको, तुम अपने ही भावों -विचारों, अपनी ही कल्पनाओं में खोए रहोगे और अपनी प्रार्थना के अपने ही अर्थ करते चले जाओगे। और इस तरह एक भ्रामक पूर्ण अवस्था में, भ्रम में जीए चले जाओगे। सिग्मंड फ्रायड ने एक पुस्तक लिखी है। पुस्तक का नाम बहुत महत्वपूर्ण है 'दि फ्यूचर ऑफ एन इल्यूजन।' यह पुस्तक धर्म के विषय में है। इसे एक दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि फ्रायड को पतंजलि के बारे में कुछ भी खबर नहीं थी, अन्यथा उसने यह पुस्तक नहीं लिखी होती। क्योंकि धर्म का अस्तित्व बिना भ्रम के ही होता है। सिग्मंड फ्रायड के लिए धर्म का अर्थ है ईसाइयत और यहदीवाद। उसे पूरब के धर्मों की गहराइयों का कुछ पता ही न था। पश्चिमी धर्म कम या अधिक रूप से राजनैतिक अधिक है। उनमें से अधिकांश धर्म तो धर्म हैं ही नहीं, उनमें कोई गहराई नहीं है, वे एकदम सतही और ऊपर-ऊपर हैं। पुरब के धर्म मनुष्य की चेतना में एकदम गहरे उतरे हैं -और उसी गहराई के कारण परमात्मा को अस्वीकार किया और कहा कि अब परमात्मा पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब भी कभी ऐसा लगता है कि किसी की जरूरत है, जिस पर निर्भर रहा जा सके, तो तुम एक भ्रम निर्मित कर रहे हो। इस बात का बोध हो जाना कि इस विराट ब्रह्मांड में तुम अकेले हो -और कोई भी नहीं है जिससे प्रार्थना की जा सके, कहीं कोई नहीं है जिससे शिकायत की जाए, कोई भी नहीं है जो तुम्हारी मदद कर
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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