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________________ के विज्ञान को जो ढांचा, जो संरचना दी है, वह अभी भी प्रतीक्षा कर रही है कि मनुष्य जाति उस अंतर्जगत के करीब आए और उसे समझ सके। हमारे सभी तथाकथित धर्म अभी बचकाने ही हैं। पतंजलि विराट हैं, मनुष्य की पराकाष्ठा हैं, मनुष्य के चरम शिखर हैं। उनकी ऊंचाई इतनी अधिक है कि चोटी तो दिखाई ही नहीं देती, वह कहीं दूर बादलों में छिपी हई है। लेकिन उनकी हर बात एकदम स्पष्ट है। अगर इसकी तैयारी हो अगर उनके बताए हुए मार्ग पर चलने की तैयारी हो, तो सभी कुछ पूर्णतया स्पष्ट है। पतंजलि के योग में रहस्य जैसा कुछ भी नहीं है। वे तो रहस्य के गणितज्ञ हैं, वे अतार्किक के तार्किक हैं, वे अज्ञात के वैज्ञानिक हैं। और यह जानकर भी बहुत आश्चर्य होता है कि एक अकेले व्यक्ति ने संपूर्ण विज्ञान को उदघटित कर दिया। उन्होंने कुछ भी छोड़ा नहीं है। लेकिन फिर भी अंतर्जगत का विज्ञान अभी भी प्रतीक्षा कर रहा है कि मनुष्य-जाति उसके करीब आए ताकि उसे समझा जा सके।' मनुष्य केवल उसे ही समझता है जिसे वह समझना चाहता है। उसकी समझ उसकी इच्छाओं से संचालित होती है। इसीलिए पतंजलि, बुद्ध, जरथुस्त्र, लाओत्सु को हमेशा यही अनुभव होता रहा कि वे समय से बहत पहले आ गए। क्योंकि आदमी तो अभी भी खेलने के लिए खिलौनों की ही मांग कर रहा है। वह विकसित होने को तैयार ही नहीं है। वह विकसित होना ही नहीं चाहता। वह अपनी मढ़ताओं को ही पकड़े रहना चाहता है। और अपनी अज्ञानता को पकड़े अपने को ही धोखा दिए चला जाता है। थोड़ा अपने को देखना। जब तुम परमात्मा के बारे में बात कर रहे होते हो, तो तुम परमात्मा के बारे में बात नहीं कर रहे होते -तुम 'अपने' परमात्मा की बात कर रहे होते हो। और तुम्हारा परमात्मा किस प्रकार का परमात्मा हो सकता है? वह तुम से बड़ा नहीं हो सकता, वह तुम से कुछ कम ही हो सकता है। वह तुम से ज्यादा सुंदर नहीं हो सकता, वह तुम से थोड़ा कम ही सुंदर होगा। फिर वह परमात्मा भी एक भ्रम ही होगा, क्योंकि तुम्हारे परमात्मा की अवधारणा में तुम निहित होओगे। इसलिए वह तुम से ज्यादा ऊंचा नहीं हो सकता है। तुम्हारी ऊंचाई ही तुम्हारे परमात्मा की ऊंचाई होगी। लोग अपनी ही इच्छा, महत्वाकांक्षा, अहंकार के अनुरूप सोचते हैं, और फिर सभी कुछ उसी रंग में रंगत। चला जाता है। ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन ने एक बार चुनाव लड़ा। उसे केवल तीन वोट मिले। उसकी पत्नी को जब पता चला कि मुल्ला को तीन वोट मिले हैं, तो वह मुल्ला पर बरसती हुई बोली, 'मुझे तो पहले से ही मालूम था कि तुमने एक दूसरी स्त्री रखी हुई है!'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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