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________________ लेकिन पश्चिम में नास्तिक की अवधारणा पूरी तरह भिन्न है। पश्चिम में नास्तिकता अभी तक परिपक्व नहीं हई है। वह भी उसी जहाज पर सवार है जहां कि आस्तिक है। आस्तिक कहे चला जाता है 'ईश्वर है।' बच्चों को ईश्वर पिता के रूप में बताया जाता है। और नास्तिक अस्वीकार करता है कि ऐसा कोई ईश्वर नहीं है। वे दोनों एक ही जहाज पर सवार हैं। पतंजलि सच्चे अर्थों में नास्तिक हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे अधार्मिक हैं। वे सच्चे अर्थों में धार्मिक हैं। सच्चा धार्मिक व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं कर सकता। मेरी यह बात थोड़ी विरोधाभासी मालूम होगी। एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि परमात्मा में विश्वास करने के लिए उसे अस्तित्व को दो भागों में बांटना पड़ता है -परमात्मा और परमात्मा नहीं, सृजन और सृजन करने वाला, यह संसार और वह संसार, पदार्थ और मन-वह विभक्त हो जाता है। और एक धार्मिक व्यक्ति विभक्त कैसे हो सकता है? एक धार्मिक व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करता, वह तो आस्तित्व की दिव्यता को ही जान लेता है। तब उसके लिए संपूर्ण जगत ही दिव्य हो जाता है, तब तो जो भी मौजूद हो वह दिव्य ही होता है। तब उसके लिए हर स्थान मंदिर होता है। कहीं भी जाओ, कुछ भी करो, परमात्मा में ही होता है, और कुछ भी करो परमात्मा का ही कार्य कर रहे होते हो। संपूर्ण अस्तित्व-जिसमें तुम भी शामिल हो - दिव्य हो जाता है। इस बात को ठीक से समझ लेना। योग एक संपूर्ण विज्ञान है। योग विश्वास नहीं सिखाता, योग जानना सिखाता है। योग अंधानुकरण बनने के लिए नहीं कहता; योग सिखाता है कि आंखें कैसे खोलनी हैं। योग परम सत्य के विषय में कुछ नहीं कहता है। योग तो बस दृष्टि के बारे में बताता है कि दिव्य दृष्टि कैसे उपलब्ध हो, देखने की क्षमता, वे आंखें कैसे उपलब्ध हों, जिससे कि जो कुछ भी मौजूद है वह सब उदघटित हो जाए। जितना तुम अनुमान लगा सकते हो वह उससे कहीं अधिक है; तुम्हारे सभी परमात्मा एक साथ मिला दिए जाएं, उससे भी अधिक। वह तो अपरिसीम दिव्यता, अलौकिकता है। इस कथा के संबंध में एक बात और। उस पागल आदमी ने कहा था, 'मैं बहुत जल्दी आ गया हूं। मेरा समय अभी तक आया नहीं है।' पतंजलि सच में ही जल्दी आ गए। उनका समय अभी तक आया नहीं है। वे अभी भी अपने समय आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हर बद्ध-पुरुष के साथ सदा ऐसा ही होता आया है. जिन लोगों को सत्य का बोध हुआ है, वे हमेशा समय से पहले ही होते हैं कई बार तो हजारों साल पहले। पतंजलि अभी भी समय से पूर्व ही हैं। पतंजलि को हुए पांच हजार वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उनका समय अभी भी आया नहीं है। मनुष्य के अंतर्जगत को अभी भी विज्ञान का आधार नहीं मिला है। और पतंजलि ने अंतर्जगत के विज्ञान को सभी आधार, संपूर्ण संरचना दे दी है। पतंजलि ने अंतर्जगत
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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