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________________ उन्होंने उत्तर दिया, 'मैं हमेशा यहीं रहूंगा। कैंब्रिज में केवल यही एकमात्र ऐसी जगह है जहां केवल परमात्मा ही मुझ से ऊपर है।' फिर एक क्षण रुककर वे बोले, 'परमात्मा हमेशा व्यस्त रहता है, लेकिन फिर भी वह मौन रहता है।' हां, परमात्मा व्यस्त है, अदभुत रूप से व्यस्त है -क्योंकि अस्तित्व में वही तो चारों ओर विद्यमान है। चारों ओर दृष्टि उठाकर थोड़ा देखो तो सही, वह कितनी चीजों को एक साथ किए जा रहा है। यह अपार असीम अस्तित्व का विस्तार उसी का तो है। तुमने हिंदुओं के देवी-देवताओं के चित्र देखे होंगे जिनके हजारों हाथ होते हैं। वे हाथ बहुत प्रतीकात्मक हैं। वे हाथ दर्शाते हैं कि परमात्मा दो हाथ से कार्य नहीं कर सकता है। क्योंकि कार्य इतना विराट और विशाल है कि दो हाथ पर्याप्त न होंगे। तुमने तीन सिरों वाले हिंदू देवताओं के चित्र देखे होंगे जो तीन दिशाओं में देख रहे होते हैं क्योंकि अगर उसके पास केवल एक सिर हो, तो उसकी पीछे वाली दिशा का क्या होगा? परमात्मा को तो सभी दिशाओं में देखना होता है। वह अपने हजारों हाथों के साथ सभी दिशाओं में व्यस्त रहता है. लेकिन इतनी शांति और मौन के साथ कि उसमें कहीं भी यह दावा नहीं होता है कि मैंने बहुत कुछ कर लिया है। और तुम कोई छोटा सा काम भी करते हो -जरा दो -चार शब्दों को सुव्यवस्थित ढंग से जोड़ हो, तो तुम सोचने लगते हो कि यह तो कविता हो गई और फिर तुम गर्व से सिर उठाकर चलने लगते हो, और तुम पागल से हो जाते हो। और तुम दावा करने लगते हो कि तुमने किसी महान कविता की रचना की है। ध्यान रहे, दावा वही लोग करते हैं जिनमें कोई योग्यता या पात्रता नहीं होती है। जिसमें योग्यता या पात्रता होती है, वह कभी दावा नहीं करते हैं। वे तो विनम्र हो जाते हैं, वे जानते हैं कि उनका अपना तो कुछ भी नहीं है। वे तो केवल माध्यम ही हैं। जब महाकवि रवींद्रनाथ भावाविष्ट हो जाते थे, तो वे अपने कमरे में चले जाते थे, और दरवाजा बंद कर लेते थे। कई-कई दिनों तक वे न तो भोजन लेते थे, और न ही अपने कमरे से बाहर आते थे। बस वे अपने को परिशुद्ध करते थे, ताकि वे परमात्मा के सम्यक माध्यम बन सकें परमात्मा उनके माध्यम से कविताओं की रचना कर सके। अपने कमरे में बंद वे रोते और सिसकते थे और वे लिखते चले जाते थे। और जब कभी कोई उनसे इस बारे में पूछता तो वे सदा यही कहते, 'जो कुछ सुंदर है वह मेरा नहीं है, और जो कुछ भी साधारण है वह जरूर मेरा ही होगा, मैंने ही कविता में उसे अपनी तरफ से जोड़ दिया होगा।' जब कूलरिज की मृत्यु हुई, तो लगभग चालीस हजार अधूरी कविताएं और कहानियां मिलीं-चालीस हजार अधूरी रचनाएं! उसके मित्र हमेशा उससे पूछते रहते थे कि 'तुम इन अधूरी रचनाओं को पूरी क्यों नहीं कर देते हो?'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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