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________________ नहीं होता कि 'तुम' सृजन कर रहे हो, तब तुम तो अस्तित्व के माध्यम बन जाते हो। तब तुम किसी ऐसी चीज से आविष्ट हो जाते हो, जो तुमसे कहीं अधिक बड़ी है, जिसने तुम्हें अपना उपकरण, अपना माध्यम बना लिया है। तब तो खाली बांस की पोंगरी होते हो, और अब उसमें से परमात्मा ही अपने गीत गाता है। तुम तो बस अस्तित्व को स्वयं के द्वारा बहने देने के लिए मार्ग बन जाते हो। अगर अहंकार लौट –लौटकर बीच में आ जाता है, और कहीं कुछ गलत होता है तो वह तुम्हारे कारण होता है। लेकिन अगर कहीं अस्तित्व में कुछ सौंदर्य घटित होता है, तो वह परमात्मा का है। अगर कुछ गलत होता है, तो तुम्हारे कारण ही गलत होता है। अगर अस्तित्व तुम्हारे माध्यम से कुछ सृजन करता है, तो तुम अपने को अस्तित्व के प्रति अनुगृहीत अनुभव करते हो। और अगर अस्तित्व तुम्हारे माध्यम से सृजन नहीं कर पा रहा है, तो उसका कारण तुम ही हो, फिर सारी की सारी गलती तुम्हारी ही है, क्योंकि तब तुम ही किसी न किसी तरह अस्तित्व के मार्ग में बाधा खड़ी कर रहे हो। अस्तित्व और तुम्हारे बीच में कहीं कुछ अवरोध है, तुम पूरी तरह से खाली और रिक्त नहीं हो कि तुम्हारे माध्यम से परमात्मा प्रवाहित हो सके, लेकिन इस जगत में जब भी कभी सौंदर्य या सजन की घटना घटती है -जैसे कोई चित्र, कोई कविता, कोई नृत्य या अन्य कुछ भी -तब वह तभी घटती है जब तम परमात्मा के प्रति गहन अनग्रह के भाव से भरे होते हो। तब हृदय में प्रार्थना उठती है, हृदय परमात्मा के प्रति अहोभाव से भर जाता है। और जब परमात्मा तुम्हारे माध्यम से सृजन करता है, तब सृजन बहुत ही मौन और शांत होता है। अभी तो जो सृजन है, वह अहंकार से भरा हुआ है, इसलिए उसमें बड़ी अशांति और उपद्रव है। अहंकार के साथ तो मैं सृजन करने वाला है, मैं सृजनकर्ता हं, इस 'मैं' के शोर के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं होता। किसी कवि की कविता चाहे किसी कोम की न हो, दो कौड़ी की ही क्यों न हो, लेकिन कवि छत पर चढ़कर चिल्लाए ही चला जाता है। इसी तरह किसी चित्रकार की चित्रकला चाहे कोई मूल्य की न हो, उसमें कोई मौलिकता न हो, चाहे वह किसी दूसरे की एक नकल मात्र ही हो, लेकिन फिर भी चित्रकार अपना सिर गर्व से ऊंचा उठाए ही चलता है कि मैं चित्रकार हैं। अहंकार शोरगुल मचा कर अपने को कुछ सिद्ध करने की कोशिश करता है। जब अहंकार बिदा हो जाता है, तब ऊर्जा अनेक रूपों में प्रवाहित होती है, लेकिन तब उसमें किसी तरह का शोरगुल नहीं होता है, तब हर चीज बड़ी शांत और सहज रूप से मौन होती है। मैंने सुना है, किसी ने एक बार हार्वर्ड के प्रोफेसर, चार्ल्स टाउनसेंड कोपलेंड से पूछा कि वे हॉलिस हाल की सबसे ऊपर की मंजिल में अपने छोटे से, धल भरे पुराने कमरों में क्यों रहते हैं?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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