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________________ 6 जब आप शरीर छोड़ें, तो मैं भी आपके साथ मर जाना चाहता है। 7-जब भी आपके निकट होता है तो तनाव महसूस करता हूं। 8-अनुग्रह प्रकट करने के लिए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? 9-कृप्या संगीत और ध्यान के विषय में कुछ कहें। 10-आप कुर्सी पर इतने आराम से बैठे होते है कि एकदम भारविहीन मालूम पड़ते है। आप गुरुत्वाकर्षण के नियम के साथ क्या करते है? पहला प्रश्न: मैं हमेशा एक ही जैसे प्रश्न बार-बार क्यों पूछती हूं? क्यों मन कया कि मन स्वयं ही एक पुनरुक्ति है। मन कभी भी मौलिक नहीं हो सकता है। मन कभी भी स्वाभाविक नहीं हो सकता है, मन का स्वभाव ही ऐसा है। मन एक उधार वस्तु है। मन नया कभी नहीं होता है; हमेशा पुराना ही होता है। मन का अर्थ होता है अतीत-वह हमेशा तिथि-बाह्य होता है। धीरे-धीरे मन का एक सुनिश्चित ढांचा, एक सुनिश्चित आदत, एक यात्रिक व्यवस्था बन जाती है। फिर इस बने -बनाए यांत्रिक जीवन को जीने में तुम बहुत कुशल हो जाते हो। फिर तुम एक रूटीन में जीए चले जाते हो। तुम एक जैसे ही प्रश्न इसलिए पूछते चले जाते हो, क्योंकि तुम्हारा मन तो वैसा का वैसा ही रहता है। जब तक तुम नए नहीं होते, तुम्हारे प्रश्न भी नए न हो सकेंगे। जब तक तुम पुराने मन को पूरी तरह से, गिरा नहीं देते हो, तब तक नए प्रश्नों का जन्म नहीं हो सकता है। क्योंकि तुम पहले से ही पुराने
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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