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________________ के भोजन के समय तुम खुश थे, थोड़ी देर बाद उदासी ने घेर लिया होता है, शाम को एकदम निराश हो गए होते हो। तुम जानते ही नहीं हो कि तुम कौन हो तुम क्षण-क्षण इसलिए बदलते चले जाते हो, क्योंकि कोई सा भी भाव जो तुम्हारे पास से गुजरता है, कुछ पलों के लिए तुम उसके साथ एक हो जाते हो, तुम भूल ही जाते हो कि यह तुम्हारा वास्तविक रूप नहीं है। एकाग्रता परिणाम चेतना की वह अवस्था है, जहां भावों का क्षण • क्षण में बदलना समाप्त हो जाता है। तुम एकाग्रचित्त हो जाते हो। केवल इतना ही नहीं, अगर तुम एक ही अवस्था में रहना चाहो, तो तुमने उस अवस्था में रहने की क्षमता अर्जित कर ली होती है। अगर प्रसन्न रहना चाहते हो तो फिर प्रसन्न रह सकते हो, और फिर तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ती ही चली जाती है। अगर आनंदित रहना चाहते हो, तो आनंदित ही रह सकते हो। अगर उदास रहना चाहते हो, तो उदास रह सकते हो, फिर सब कुछ तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है। अब मालिक तुम ही होते हो। वरना बिना एकाग्रता के बाहर तो सभी कुछ बदलता रहता है। जब मैं तुम्हें देखता हूं तो तुम्हें देखकर मुझे भरोसा ही नहीं आता है कि आखिर तुम सब कुछ चला कैसे लेते हो। कभी – कभी प्रेमी मेरे पास आ जाते हैं और कहते हैं, 'हम एक दूसरे के गहरे प्रेम में हैं। हमें आशीर्वाद दें।' और दूसरे ही दिन वे आकर कहते हैं, 'हम आपस में हमेशा लड़ते झगड़ते रहते हैं, इसलिए हम अलग हो गए हैं।' — इसमें सत्य क्या है? प्रेम या झगड़ा । तुम्हारे साथ तो कोई भी बात सत्य मालूम नहीं होती है। इस क्षण प्रेम में होते हो, तो अगले ही क्षण झगड़ा शुरू हो जाता है। क्षण में सब कुछ बदल जाता है कुछ भी स्थायी नहीं है जो कुछ भी होता है, वह तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा नहीं होता है सभी कुछ तुम्हारे सोचने-विचारने की प्रक्रिया का ही हिस्सा होता है एक विचार के साथ तुम कुछ होते हो दूसरे विचार के साथ कुछ और हो जाते हो। प्रत्येक विचार तुम्हें अपने रंग में रंगता चला जाता है। ऐसा हुआ एक लड़की की दृष्टि कमजोर थी और उसे चश्मा लगाना अच्छा नहीं लगता था। उसने विवाह करने की ठानी। आखिरकार उसका विवाह भी हो गया। और वह अपने पति के साथ हनीमून मनाने के लिए नियाग्रा फाल्स गई जब वह हनीमून मनाकर वापस लौटी तो उसको देखकर उसकी मां एकदम चीख पड़ी जल्दी से दौड़कर उसने आंखों के डाक्टर को फोन किया। 'डाक्टर' वह हांफते हुए बोली, 'बिलकुल अभी आपको यहां आना होगा। बहुत ही संकट की घड़ी है। घड़ी मेरी बेटी को चश्मा लगाना बिलकुल अच्छा नहीं लगत, और अभी वह हनीमून से लौटी है, और........ 'मैडम, 'डाक्टर बीच में ही टोकते हुए बोला, 'कृपया अपने पर नियंत्रण रखें। आपकी बेटी अस्पताल में आ जाए। चाहे उसकी आंखें कितनी ही खराब क्यों न हों, फिर भी यह कोई बहुत बड़ा संकट नहीं है।' 'ओह, नहीं?' मां ने कहा, सुनिए तो जरा, अब जो आदमी उसके साथ है वह वही आदमी नहीं है, जिसके साथ वह नियाग्रा फाल्स देखने गई थी।' -
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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