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________________ था। क्योंकि जो कुछ भी उसे उपलब्ध था, वह उससे अधिक की, उससे बेहतर की कल्पना कर सकता था। और यही बात उसकी पीड़ा, और उसके दुख का कारण बन गई। स्मरण रहे, अगर जीवन से तुम्हें कुछ आशा और अपेक्षा है, तो तुम जीवन में कुछ भी प्राप्त न कर सकोगे। अगर अपेक्षा न हो, तो चीजें अपनी परिपूर्ण महिमा के साथ उपस्थित हैं। कोई अपेक्षा कोई मांग न हो, तो अस्तित्व के सभी चमत्कार तुम पर बरस जाते हैं। अस्तित्व का संपूर्ण जादू तुम्हारे सामने प्रकट हो जाता है उस समय की प्रतीक्षा करो, जब कि कोई विचार न हो लेकिन यह तो असंभव मालूम होता है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारे जीवन में कभी निर्विचार के क्षण न आते हों। पतंजलि कहते हैं, वैसे क्षण आते हैं। वे सभी प्रज्ञावान पुरुष जिन्होंने मनुष्य के अंतस्तल में प्रवेश किया है, वे जानते हैं कि मनुष्य के जीवन में निर्विचार के, अंतराल के क्षण आते हैं लेकिन वह उन्हें चूक – चूक जाता है, क्योंकि वे अंतराल के क्षण, वर्तमान में होते हैं और व्यक्ति एक विचार से दूसरे विचार में छलांग लगाता चला जाता है, और उन दो विचारों के बीच में ही अंतराल का क्षण होता है। स्वर्ग बीच में है - और व्यक्ति है कि एक नरक से दूसरे नरक तक छलांग लगाता रहता है। स्वर्ग बीच में है, लेकिन तुम उन दोनों के बीच में नहीं हो। तुम एक विचार से दूसरे विचार के बीच में छलांग भरते रहते हो और प्रत्येक विचार तुम्हारे अहंकार को पोषित करता रहता है, तुम्हारे होने को पोषित करता रहता है, तुम्हें विशेष सिद्ध करता रहता है। तुम्हें एक निश्चित ढांचा, आकार, रूप दे देता है, और तुम्हारा उसी निश्चित ढांचे रूप और आकार के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाता है। तुम दो विचारों के बीच के अंतराल को देखना ही नहीं चाहते, क्योंकि उस अंतराल में देखना अपने मौलिक चेहरे को देखना है, जिसका कहीं कोई तादात्म्य नहीं है। उस अंतराल में देखना शाश्वत को देखना है, जहां कि तुम विलीन ही हो जाओगे। दो विचारों के बीच के शून्य या अंतराल को देखने से तुम इतने भयभीत हो कि तुमने ऐसी व्यवस्था कर ली है कि तुम उन्हें देखो ही नहीं, कि तुम उन्हें भूल ही जाओ । दो विचारों के बीच में अंतराल होता है, लेकिन तुम उसे देख नहीं पाते हो। एक विचार दिखाई पड़ता है, फिर दूसरा विचार दिखाई पड़ता है, फिर कोई और विचार थोड़ा ध्यान देना। दो विचार कभी भी एक-दूसरे पर चढ़ते नहीं हैं। प्रत्येक विचार अपने में अलग होता है। तो फिर दो विचारों के बीच अंतराल होगा ही। दो विचारों के बीच अंतराल होता ही है, और वही अंतराल शून्य में जाने का द्वार है। उसी द्वार से निर्विचार में, अस्तित्व में फिर से प्रवेश संभव हो सकता है। उसी द्वार से तो तुम्हें गार्डन ऑफ ईदन के बाहर कर दिया गया है। उसी द्वार से फिर से स्वर्ग में प्रवेश मिलेगा, जब तुम फिर से चट्टान पर धूप सेंकते हुए उस गिरगिट की भांति विश्रांत हो जाओगे। मैंने सुना
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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