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________________ कभी सत्य नहीं होता है। और जो सत्य है, वह विचार नहीं होता है। सत्य एक अनुभव है। सत्य एक अस्तित्वगत अनुभव है। तुम नृत्य कर सकते हो, धूप का आनंद ले सकते हो, गाना गा सकते हो, किसी को प्रेम कर सकते हो, लेकिन केवल विचार के माध्यम से यह सब कुछ यथार्थ में संभव नहीं है क्योंकि विचार हमेशा किसी के 'आसपास' होता है और वही सारे दुखों की जड़ है। उसी के चारों ओर तुम घूमते रहते हो -और उस तक नहीं पहुंच पाते हो जो कि हमेशा उपलब्ध ही था। सभी ध्यान की प्रक्रियाओं का कुल सार इतना ही है कि गिरगिट की तरह, धूप में चट्टान पर विश्रांत होकर बैठ जाना, वर्तमान के क्षण में, अभी और यहीं में ठहर जाना। और समग्र अस्तित्व का हिस्सा बन जाना। कहीं कोई भविष्य की दौड़ नहीं, और न ही किसी अतीत की चिंता। उस अतीत का व्यर्थ ही बोझा ढोना जो कि है ही नहीं। जब अतीत का बोझ न हो, भविष्य की चिंता न हो, तो कोई कैसे दुखी रह सकता है? लिओ टाल्सटाय पर अगर अतीत का बोझ न हो और भविष्य की चिंता न हो, तो दुखी कैसे हो सकते हैं? तब दुख का अस्तित्व ही कहां रहता है? फिर दुख स्वयं को कहां छिपाकर रख सकेगा। जब न तो अतीत का बोझ रहता है और न ही भविष्य की चिंता, तब अकस्मात व्यक्ति एक विस्फोट के साथ अलग ही आयाम में चला जाता है वह समय के पार चला जाता है, और अनंत का हिस्सा बन जाता है। जैसे ग्रामोफोन रिकार्ड पर सुई अटक जाती है, और वही-वही दोहराए चला जाता है, ऐसे ही हम भी ग्रामोफोन रिकार्ड की भांति स्वयं को दोहराते हुए जीए चले जाते हैं। मैंने सुना है. दो लड़कियां एक बगीचे में बातचीत कर रही थीं। उनमें से एक लड़की बहुत ही उदास और दुखी थी, दूसरी लड़की उसके दुख में सहानुभूति अनुभव कर रही थी। वह उस मिंक कोट में सजी गुड़िया सी लड़की को आलिंगन में लेते हुए बोली, 'एंजलीन, तुम्हें क्या दुख है?' एंजलीन कंधे उचकाकर बोली, 'ओह, कोई खास बात तो नहीं है। लेकिन कोई पंद्रह दिन पहले मिस्टर शार्ट मर गए। तुम्हें उनकी याद है न? वे हमेशा मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते थे। खैर, वे मर गए और मेरे लिए पचास हजार रुपया छोडूं गए। फिर अभी पिछले हफ्ते बेचारे वृद्ध मिस्टर पिल्किनहाउस को भी दौरा पड़ा और वे भी चल बसे, और मेरे लिए साठ हजार रुपया छोड़ गए। और इस हफ्ते –इस हफ्ते कुछ भी नहीं हुआ।' यही है तकलीफ-हमेशा दूसरों से अपेक्षाएं रखना, और अधिक की मांग करते जाना। और इस मांग का कहीं कोई अंत नहीं है। और जो कुछ भी मिला है, मन उससे अधिक और अधिक की कल्पना करके हमेशा के लिए दुखी रह सकता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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