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________________ प्रवचन 45 - योग के आठ अंग 'योग-सूत्र' (साधनपाद) योगागानुष्ठानात् अशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिरा विवेकख्याते:।। 28// योग के विभिन्न अंगों के अभ्यास द्वारा अशुदधि के क्षय होने से आत्मिक प्रकाश का अविर्भाव होता है, जो कि सत्य का बोध बन जाता है। यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोउष्टावाड्गानि।। 29// यम, नियम,आसन,प्राणायन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। जिस प्रकाश को तम खोज रहे हो वह तम्हारे भीतर ही है। इसलिए खोज होगी भीतर की ओर। यह यात्रा किसी बाहरी मंजिल की नहीं है, यह अंतस की यात्रा है। तुम्हें अपने केंद्र पर पहुंचना है। जिसे तुम खोज रहे हो, वह पहले से ही तुम्हारे भीतर है। तुम्हें तो बस प्याज के छिलके उतारने हैं : पर्त दर पर्त अज्ञान है वहा। हीरा छिपा हआ है कीचड़ में; हीरे को निर्मित नहीं करना है। हीरा तो मौजूद ही है केवल कीचड़ की पर्ते हटा देनी हैं। यह एकदम मूलभूत बात है समझ लेने की : खजाना पहले से ही मौजूद है। शायद तुम्हारे पास चाबी नहीं है। चाबी को खोजना है-खजाने को नहीं। यह पहली बात है, एकदम मूलभूत, क्योंकि सारी प्रक्रिया निर्भर करेगी इसी समझ पर। यदि खजाने को निर्मित करना हो, तब तो यह बड़ी लंबी प्रक्रिया होगी; और कोई निश्चित भी नहीं हो सकता कि इसे निर्मित किया भी जा सकता है या नहीं। लेकिन
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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